Book Title: Sthananga Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000
३. अप्रमाद - मद्य, विषय, कषाय निद्रा, विकथा-इन पाँच प्रमादों का त्याग करना, अप्रमत्त भाव में रहना अप्रमाद है।
४. अकषाय - क्रोध, मान, माया, लोभ-इन चार कषायों को त्याग कर क्षमा, मार्दव, आर्जव और शौच (निर्लोभता) का सेवन करना अकषाय है।
५. अयोग - मन, वचन, काया के व्यापारों का निरोध करना अयोग है। निश्चय दृष्टि से योग निरोध ही संवर है। किन्तु व्यवहार से शुभ योग भी संवर माना जाता है। ___पाँचों इन्द्रियों को उनके विषय शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श की ओर जाने से रोकना, उन्हें अशुभ व्यापार से निवृत्त करके शुभ व्यापार में लगाना, श्रोत्र, चक्षु, प्राण, रसना और स्पर्शन इन्द्रियों का संवर है। .
१. अहिंसा - किसी जीव की हिंसा न करना, दया करना और मरते हुए प्राणी की रक्षा करना अहिंसा है।
२. अमृषा - झूठ न बोलना, या निरवध सत्य वचन बोलना अमृषा है। ३. अचौर्य - चोरी न करना या स्वामी की आज्ञा मांग कर कोई भी चीज लेना अचौर्य है। ४. अमैथुन - मैथुन का त्याग करना अर्थात् ब्रह्मचर्य पालन करना अमैथुन है। .
५. अपरिग्रह - परिग्रह का त्याग करना, ममता मूर्छा से रहित होना या सन्तोष का सेवन करना अपरिग्रह है। . दण्ड की व्याख्या और भेद - जिससे आत्मा व अन्य प्राणी दंडित हो अर्थात् उनकी हिंसा हो इस प्रकार की मन, वचन, काया की कलुषित प्रवृत्ति को दण्ड कहते हैं। दण्ड के पांच भेद -. १. अर्थ दण्ड २. अनर्थ दण्ड ३. हिंसा दण्ड ४. अकस्मादण्ड ५. दृष्टि विपर्यास दण्ड। . १. अर्थ दण्ड - स्व, पर या उभय के प्रयोजन के लिये त्रस स्थावर जीवों की हिंसा करना अर्थ दण्ड है।
२. अनर्थदण्ड - अनर्थ अर्थात् बिना प्रयोजन के त्रस स्थावर जीवों की हिंसा करना अनर्थ दण्ड हैं।
३. हिंसा दण्ड - इन प्राणियों ने भूतकाल में हिंसा की है। वर्तमान काल में हिंसा करते हैं और भविष्य काल में भी करेंगे यह सोच कर सर्प, बिच्छू, शेर आदि जहरीले तथा हिंसक प्राणियों का और वैरी का वध करना हिंसा दण्ड है।
४. अकस्माइण्ड - एक प्राणी के वध के लिए प्रहार करने पर दूसरे प्राणी का अकस्मात्-बिना इरादे के वध हो जाना अकस्मादण्ड है।
५. दृष्टि विपर्यास दण्ड - मित्र को वैरी समझ कर उसका वध कर देना दृष्टिविपर्यास दण्ड है। क्रिया की व्याख्या और उसके भेद - कर्म बन्ध की कारण चेष्टा को क्रिया कहते हैं।
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