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अर्द्धमागधी जैन आगम साहित्य में माला निर्माण-कला : ११
हैं। कालिदास ने इसे तीन लड़ों वाली माला माना है, जिसे तपश्चरणकाल में पार्वती ने धारण किया था। ३. वेतंमालियं - वेंत काष्ठ की माला। ४. कट्ठमालियं-काष्ठ की माला-चंदन, तुलसी एवं अन्य सुगंधित लकड़ियों की माला 'कट्ठमालियं' है। आगमकाल में काष्ठ माला का प्रयोग बहुतायत होता था। ५. पत्तमालियं - पत्तों की माला। ६. भिंडमालियं - भीड की माला। ७. मयणमालियं - मोम की माला अथवा मदन (वृक्ष-विशेष) के पुष्प की माला (निशीथ ७.३ पर चूर्णि) ८. पिच्छमालियंमोर पंख की माला। ९. दंतमालियं - हाथी के दांत की माला। (निशीथ चूर्णि ७.३४) १०. सिंगमालियं - सींग की माला। ११. संखमालियं - शंख की माला।
१२. हडमालियं - हड्डियों की माला। बन्दर की हड्डियों की माला जो बच्चों के गले में पहनायी जाती है। (निशीथ चूर्णि ७.३) १३. पुप्फमालियं - पुष्पों की माला। १४. फलमालियं - फलों की माला। रुद्राक्षादि के फलों की माला। १५. बीजमालियं - बीजों की माला। १६. हरियमालियं - हरित-वनस्पति की माला।
इस प्रकार आगम साहित्य में अनेक प्रकार के पुष्पमालाओं के निर्माण संबंधी प्रमाण उपलब्ध हैं। माला निर्माण में जो निपुण होते थे उन्हें मालाकार (माली) कहा जाता था। मालाकार शब्द का आगम-साहित्य में अनेक स्थलों पर उल्लेख है। राजगृह में अर्जुनक नाम का मालाकार रहता था। वह अपने पुष्पाराम (पुष्पों के बाग) से प्रतिदिन फूलों की टोकरी लेकर फूल चुनने के लिए जाता था। उसके उद्यान में दस रंगों के सुगंधित पुष्प खिलते थे।२३ वहीं पर मालाकारिणी का भी उल्लेख है।२४
माला निर्माण में उपयोग किए जाने वाले पुष्पों एवं अन्य वनस्पतियों का आगम साहित्य में प्रभूत रूप से उल्लेख मिलता है। जिनका संक्षिप्त निर्देश इस प्रकार है
___ अइमुत्तकलया (माधवीलता जीवाभिगम, ३.५८४), अगरु-अगर (राजवार्तिक ३०), अत्तिमुत्त-कस्तूरीमोगरा (जीवाभिगम ३.२९६), असोग-अशोक (भगवती २२.२, जीवाभिगम १.७१), कच्छाभद्रमुस्त-मोथा (प्रश्नव्याकरण १.४६), करीर-केर-करील (प्रश्नव्याकरण १.३७.४), उसीर-खस (राजप्रश्नीय ३०, जीवाभिगम ३.२८३), कदंब-कदम (औपपातिक ९, जीवाभिगम ३.५८३), कप्पूर-कपूर (राजप्रश्नीय ३०, जीवाभिगम ३.२८३), कल-गोलोचना (स्थानांग ५.२०९, भगवती ६.३०), कुंकुम-केशर (राजप्रश्नीय ३०, जीवाभिगम ३.२८३), कुंद (भगवती २२.५, राजप्रश्नीय २९), ग्रीवा, कुरुविंद-नागरमोथा (प्रश्नव्याकरण १.४२.२), केतकि, केतगि, केयइ - केवड़ा (जीवाभिगम ३.२८३, राजप्रश्नीय ३०, भगवती २२.१), कोकणद-लालकमल (प्रश्नव्याकरण १.४६), कोद्दाक-कोविदार (जीवाभिगम ३.५१२), चंदण (भगवती २२.३, औपपातिक ९, राजप्रश्नीय ३०), चंपअ-चंपक (स्थानांग ८.११७.२, जीवाभिगम ३.५८०), जाई-चमेली (प्रश्नव्याकरण १.३८.२), जावति-जावित्री
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