Book Title: Sramana 2004 10
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 151
________________ छाया: ततः किर्माप चिन्तयित्वा क्षणांतरं दीर्घ च निःश्वस्य । कथयति सुप्रतिष्ठः सविषादं ईदृशं वचनम् ||२१८।। अर्थ :- त्यारपछी कांइपण विचारीने क्षणपछी लांबो श्वास लईने विषादपूर्वक आवा प्रकारना वचन ‘सुप्रतिष्ठ' बोले छे. हिन्दी अनुवाद :- तत्पश्चात् कुछ सोचकर एक क्षण बाद लंबा श्वास लेकर सुप्रतिष्ठ विषाद युक्त इस प्रकार बोलता है। गाहा : अम्हारिसेहिं गिहमागयाण तुम्हारिसाणं सुयणाणं । को उवयारो कीरउ एरिस-ठाणे वसंतेहिं ? ॥२१९॥ छाया: अस्मादृशैः गृहमागतानां युष्मादृशानां सुजनानाम् । कः उपकारः क्रियताम् ईदृश-स्थाने वसद्धिः ? ||२१९।। अर्थ :- “आवा स्थानमा रहेता अमारा जेवा बड़े घरे आवेला तमारा जेवा सज्जनोनो कयो उपकार कराय ?" हिन्दी अनुवाद :- "ऐसे स्थान में रहते हुए मेरे से गृहांगण में आये हुये आप जैसे सज्जनों का क्या उपकार किया जाये ?" गाहा : तहवि हु भणामि किंचिवि कायव्वो नेव पत्थणा-भंगो । जेण पर - कज्ज - साहप्प - निरया खलु सज्जणा होंति ॥२२०॥ छाया : तथापि खलु भणामि किञ्चिदपि कर्तव्यः नैव प्रार्थना-भगः । येन पर • कार्य - साधन - निरता खलु सज्जनाः भवन्ति ।।२२०।। अर्थ :- तो पण हुंकाईक कहुं छु. ते मारी प्रार्थनानो भंग न ज करवो जोइए. जे कारणथी खरेखर सज्जनो पर-कार्य ने साधवामां निरत होय छे." हिन्दी अनुवाद :- फिर भी मैं कुछ कहता हूँ सो आपको मेरी इस प्रार्थना को भंग नहीं करना चाहिए, जिस कारण से निश्चय ही सज्जन परोपकार में निरत रहते हैं।" सुप्रतिष्ठ द्वारा धनदेवने दिव्यमणि भेंट गाहा : तत्तो फुरंत-निम्मल-मऊह-विच्छरिय-दस-दिसा-ऽऽभोगो । एक्कोवि अणेग - गुणो पवर - मणी तस्स उवणीओ ॥२२॥ छाया: ततः स्फुरंत-निर्मल-मयूख-विच्छुरित-दश-दिशा-आभोगः । एकोऽपि अनेक-गुणः प्रवर-मणिः तस्मै उपनीतः । २२१।। अर्थ :- त्यार पछी देदीप्यमान निर्मल किरणोथी झांखी करी हे दशे दिशाना विस्तारने एवो एक पण अनेक गुणवाळो श्रेष्ठ मणि तेनी पासे मूकयो. 46 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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