Book Title: Sramana 2004 10
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 159
________________ हिन्दी अनुवाद :- अतः निर्गत वेदनावाला वह पुरुष शीतल वृक्ष की छाँव में मेरे द्वारा बनाई हुई सुकोमल किसलय की गादी में बैठा । गाहा : छाया : आभट्ठो पढमं च तेण अहयं कत्तो तुमं आगतो, 1 किं वा नाम कहिं कुलम्मि विमले जाओ सि को ते पिया ? एवं भो घणदेव ! तेण तइया पुढे मए साहिया, पुव्वत्ता सलावि तुज्झ कहिया जा सा पउत्ती तहिं ॥ २४८ ॥ आभाषितः प्रथमं च तेन अहकं कुतस्त्वंआगतो, किं वा नाम कस्मिन् कुले विमले जातोऽसि कस्ते पिता । एवं भो धनदेव ! तेन तदा पृष्टे मया कथिता, पूर्वोक्ता सकलापि तव कथिता यासा प्रवृत्तिस्तदा ||२४८|| अर्थ :- तेना वड़े पहेला हुं पूछायो “तुं क्यांथी आवेलो छे ? तारु नाम शुं छे ? कया निर्मल कुलमां तारो जन्म थयो छे ? तारा पिता कोण छे ? त्यारे तेनावड़े पृछाये छते हे धनदेव ! जे वृतान्त तने कहेवायो ते पूर्वकहेलो संपूर्ण वृत्तांत आ प्रमाणे मारा वड़े कहेवायो.” हिन्दी अनुवाद :उनके द्वारा पहले मैं पूछा गया - "तूं कहाँ से आया है ? तेरा नाम क्या है ? कौन से निर्मल कुल में तेरा जन्म हुआ है ? तेरे पिता कौन हैं ? इस प्रकार उनसे पूछा जाने पर हे धनदेव ! जो प्रवृत्ति मैंने पहले तुझे कही वही संपूर्ण प्रवृत्ति मैंने उसे भी कही ।" गाहा : छाया : साहु - धणेसर - विरइय सुबोह - गाहा - समूह - रम्माए । रागाग्गि दोस विसहर पसमण जल मंत भूयाए ।। २४९॥ - - साधु-धनेश्वर- विरचित सुबोध - गाथा समूह रम्यया । रागाग्नि दोष विषधर प्रशमन जल मन्त्र - भूतया ||२४९|| अर्थ : सुखेथी बोधकरी शकाय तेवा गाथाना समूहथी रम्य, राग रूपि अग्नि अने द्वेषरूपि विषधरने शान्त करवा माटे जलरूपी मन्त्रसमान, साधु धनेश्वरवड़े रचना करायेल. - Jain Education International - - - - एसो एत्थ समप्पइ विज्जाहर सुरसुंदरि नामाए कहाए बीओ 54 हिन्दी अनुवाद - सुखपूर्वक बोध हो सके ऐसी गाथाओं के समूह से रम्य, राग तुल्य अग्नि और द्वेष तुल्य विषधर को शान्त करने के लिए जलरूप मन्त्र समान... गाहा : - · - मोयणोत्ति नामेण । परिच्छेओ ।। २५० । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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