________________
हिन्दी अनुवाद :- फिर देदीप्यमान निर्मल किरणों से दशों दिशाओं को प्रकाशित करनेवाला अनेक गुणवाला मणि धनदेव के पास लाया ।
गाहा :
छाया :
छाया :
लक्खणं
ददतुं दिव्व मणिं तं दीसंताणेय वियसिय- लोयण - जुअलो अह धणदेवो इमं
विमलं ।
भणति || २२२||
दृष्ट्वा दिव्य-मणिं तं दर्शयन्ननेक-लक्षणं विकसित लोचन - युगलः अथ धनदेव इमं अर्थ :- अनेक लक्षणवाळी, विमल, दिव्य मणिने जोता विकसित लोचन युगल वाळो धनदेव हवे अने कहे छे.
हिन्दी अनुवाद :- अनेक लक्षणयुक्त विमल, दिव्यमणि को देखते ही विकसित लोचन युगलवाला धनदेव उसे ( सुप्रतिष्ठ से) कहता है ।
गाहा :
छाया :
-
-
-
एरिस पवर मणीणं मणुस्स खेत्तम्मि संभवो नत्थि ।
नवरं जइ सुर लोगे हवेज्ज न हु अन्न - खेत्तम्मि ॥२२३॥
·
-
विमलं । भणइ ।। २२२।।
नास्ति ।
ईदृश- प्रवर- मणीनां संभवो मनुष्य-क्षेत्रे नवरं यदि सुर- लोके भवेत् न खलु
अन्य क्षेत्रे || २२३||
अर्थ :- आवा प्रकारना श्रेष्ठ मणिनो संभव मनुष्य क्षेत्रमां नथी जो के आ देवलोक सिवाय अन्य क्षेत्रमां न होय.
हिन्दी अनुवाद :- ऐसे श्रेष्ठ मणि का मनुष्य क्षेत्र में होना संभव नहीं है, क्योंकि यह देवलोक के अलावा अन्य क्षेत्रों में नहीं रहता है।
गाहा :
एवं विणिच्छियम्मिवि तहवि हु कोऊहलं महं हियए । तो भणसु कह णु जाया संपत्ती तुम्ह
Jain Education International
एवं विनिश्चितेपितथापि खलु कुतूहलं मम
हृदये ।
ततः
भण कथं नु जाता सम्प्राप्ति तव एतस्य ? ||२२४ || अर्थ :- आ प्रमाणे निश्चय करे छते पण मारा हृदयमां निश्चे कुतूहल थयु छे. तेथी कहे आ मणिनी उत्पत्ति केवी रीते थई छे ?
तो भइ सुप्पट्ठो सम्मं हि विणिच्छियं तुमे माणुस - खेत्त - समुत्थो न होइ एसो मणी
47
For Private & Personal Use Only
एयस्स ? ॥ २२४ ॥
हिन्दी अनुवाद :- इस प्रकार का निश्चय होने पर भी मेरे हृदय में निश्चित कुतूहल होता है, इसीलिए कहो कि इस मणि की उत्पत्ति कैसे हुई ?
गाहा :
भद्द ! ताव ॥ २२५ ॥
www.jainelibrary.org