Book Title: Sramana 2004 10
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 149
________________ छाया : त्वं एव कुमार ! महात्मा त्वमेव प्रशमस्य लब्ध-परमार्थः । त्वं एव विवेक-युक्तः त्वया एव मंडिता वसुधा ।।२११।। अर्थ :- हे कुमार ! तुंज महात्मा छे ! तुं ज प्रशमना मेळवेला परमार्थवाळो छे, तुं ज विवेक-युक्त छे. तारा वड़े ज आ पृथ्वी शोभे छे. हिन्दी अनुवाद :- हे कुमार ! तूं ही महात्मन् है ! तूं ही प्रशम से प्राप्त किये हुये परमार्थवाला है, तूं ही विवेकयुक्त है, तेरे से ही यह पृथ्वी शोभित है। गाहा : पिउणाऽवमाणिओवि ह अन्नं असमंजसं अकाऊणं । संतम्मि बले तहवि ह देस-च्चाओ कओ जेण ॥२१२॥ छाया : पित्रा अपमानितोऽपि खलु अन्यत् असमंजसम कृत्वा । सति बले तथाऽपि खलु देश-त्यागः कृतो येन ।।२१२।। अर्थ :- पितावड़े अपमानित थयेलो पण तेवा प्रकारचं बल होते छते पण बीजु कांइ ज असमंजस का वगर जेना वड़े खरेखर देशत्याग करायो." हिन्दी अनुवाद :- पिता द्वारा अपमानित और शक्ति होने पर भी और कुछ अप्रिय न करते हुये आप द्वारा देश त्याग किया गया-" गाहा : एमाइ-वयण-वित्थर-अवरोप्पर-वड्ढमाण-नेहाणं । ताणं पंच व सत्त व वोलीणा वासरा जाव ॥२१३॥ छाया: एवमादि वचन विस्तर परस्पर-वर्द्धमान स्नेहानाम् । तेषां पंच वा सप्त वा अतिक्रान्ता वासरा यावत् ||२१३।। अर्थ :- इत्यादि वचननां विस्तारवड़े परस्पर-वधता स्नेहवाळा तेओनां ज्यां सुधी मां पांच सात दिवस पसार थया. हिन्दी अनुवाद :- इत्यादि वचन से परस्पर बढ़ते-स्नेहवाले उनके पांच-सात दिन बीत गये। धनदेवनी प्रस्थान भावना गाहा : तावय समत्थ-सत्यं दट्टणं गमण-उच्छुगीभूयं । धणदेवो आपुच्छइ गमणत्यं सुप्पइटुं तं ॥२१४॥ छाया : तावत् समस्त-सार्थं दृष्ट्वा गमनोत्सुळीभूतम् । धनदेव आपृच्छति गमनाथ सुप्रतिष्ठं तं ।।२१४।। अर्थ :- त्यांसुधीमा जवा माटे उत्सुक थयेला समस्त सार्थ ने जोईने ते सुप्रतिष्ठने जवा माटे धनदेव पूछे छे. 44 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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