Book Title: Sramana 2004 10
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 147
________________ छाया : अर्थ :परिवरेलो हुं हमणां पल्लिपति थयो छं. हिन्दी अनुवाद :- यहाँ पर मुझे अनेक भिल्ल, चोर और कुकर्मासक्त लोग मिले और उन लोगों से परिवृत मैं अब पल्लिपति हूँ। गाहा : छाया : मिलिता मह्यम् अनेके भिल्लाः चोराः कुकर्म निरताश्च । परिवृतोऽहं सम्प्रति पल्ली - पतिः तैः जातः ||२०४ || मने चोरो अने कुकर्ममां लागेला अनेक भिल्लो मण्या. तेओ वड़े छाया : तं जं तुम पुढं तुम्हाणं कह णु एत्थ आवासो । पाविट्ठलोय - जोगाए उत्तम नराण आवासः । तद् यद् त्वया पृष्टं युष्माकं कथं नु अत्र उत्तम नराणां पापिष्ठ-लोक-योग्यायां पल्लयाम् ? || २०५ || अर्थ :- पापिष्ठ लोकने योग्य पल्लिमां तमारा जेवा उत्तम मनुष्योनो आवास क्यांथी ए तारा, वड़े जे पूछायु ते - - गाहा : छाया : एयं संखेवेणं कहियमवत्थाण-कारणं तं तुह धणदेव ! मए गरुय सिणेहेण पल्लीए ? ॥२०५॥ एतं संक्षेपेण कथितमस्थान- कारणं अत्र । तं तव धनदेव ! मया गुरु- स्नेहेन सर्वमपि ।। २०६|| युग्मम् अर्थ :- आ अही अवस्थाननु कारण हे धनदेव ! अतिस्नेहवाळा मारा बड़े सर्व पण तने ते संक्षेपथी कहेवायु ! हिन्दी अनुवाद : पापी लोगों के पल्लि में आप जैसे उत्तम मनुष्य का वास कहाँ से यह तेरे द्वारा जो पूछा गया उसका यह कारण है और हे धनदेव ! अति स्नेहान्वित मेरे से तेरे सामने संक्षेप में सब कुछ कहा गया है। गाहा : भणियं धणदेवेणं अव्वो ! जणओवि एरिसं कुणइ । अवमाणं पुत्ताणं धी ! धी ! संसार वासस्स ॥२०७॥ Jain Education International एत्थ । सव्वंपि ॥ २०६ ॥ 42 करोति । भणितं धनदेवेन अव्वो ! जनकोऽपि ईदृशं अपमानं पुत्राणां धीक् ! संसार वासस्य || २०७|| अर्थ :- धनदेव वड़े कहेवायु, “अरे ! पिता पण आवु पुत्रोनुं अपमान करे छे! संसार वासने निश्चे धिक्कार हो ! धिक्कार हो ! धीक् ! हिन्दी अनुवाद :धनदेव ने कहा कि अरे ! पिता भी पुत्र का इस प्रकार अपमान करते हैं ? निश्चित ही संसार वास को धिक्कार हो ! धिक्कार हो ! For Private & Personal Use Only . www.jainelibrary.org

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