Book Title: Sramana 2004 10
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 145
________________ अर्थ :- तेथी अन्यदेशमा जईने अन्य राजानी सेवा करू. बीजा राजानी सेवा करवी पण अपमान जनक लेखाशे ! तेथी ते पण युक्त नथी. हिन्दी अनुवाद :- अतः अन्य देश में जाकर अन्य राजा की सेवा करूं? अन्य की सेवा करना भी अपमानजनक ही है। अतः वह भी उचित नहीं है। गाहा : सुग्गीव - नरिंद - सुओ जुयराया आसि एस रिद्धि-जुओ। संपइ पुण वंठो इव कह सेवं कुणइ भिच्चाण ? ॥१९८॥ छाया : सुग्रीव-नरेन्द्र-सुतः युवराजो आसीत् एषः ऋद्धि-युक्तः । सम्प्रति पुनः वण्? इव कथं सेवां करोति भृत्यानाम् ।।१९८।। अर्थ :- सुग्रीव राजानो आ युवराज पुत्र ऋद्भिवाळो छे. तो वळी हमणां वंठनी जेम नोकरोनी केम सेवा करे छे ? (आ प्रमाणे लोकोक्ति थशे !) हिन्दी अनुवाद :- सुग्रीव राजा का यह युवराज पुत्र ऋद्धिवान् है, ऐसी लोकोक्ति है तो फिर अभी नपुंसक की तरह किसी राजा की क्यों सेवा करूं? गाहा : • एमाइ-वयण-वित्थर-वज्जरण-समुज्जएण लोएणं । दंसिज्जंतो रिऊणं कह गेहेसं परिभमिस्सं ? ॥१९९॥ छाया: एवमादि-वचन-विस्तर कथयन् समुद्यतेन लोकेन । दर्श्यमानः रिपूनां कथं गृहेषु - परिभ्रमिष्यामि ? ||१९९।। अर्थ :- इत्यादि वचन-विस्तारने बोलवामां उघत थयेला लोकवड़े बताडाता शत्रुना घरमां शा माटे भमुं ? हिन्दी अनुवाद :- इत्यादि वचन के विस्तार को बोलते उद्यमित लोक द्वारा बताये हुये शत्रु के घर में मैं भ्रमण क्यों करूं? गाहा : तम्हा कइवय-निय-पुरिस-परिगओ अकय-अन्न-जण-सेवो । गंतु चिट्ठामि अहं कम्मिवि पच्चंत-देसम्मि ॥२००॥ छाया: तस्मात् कतिपय-निज-पुरुष-परिगतः अकृत-अन्य जनसेवा । गत्वा तिष्ठामि अहं कस्मिमपि प्रत्यन्त-देशे ।।२००।। अर्थ :- तेथी केटलाक पोताना पुरुषथी परीवरेलो नही करेली अन्य जननी सेवावाळो हुं कोईपण एकान्त प्रदेशमां जईने रहुं. हिन्दी अनुवाद :- अतः अपने चुनंदे पुरुष से आवृत अन्य जन की सेवा नहीं करने वाला मैं एकान्त प्रदेश में ठहरूं। 40 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162