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श्रमण, वर्ष ५५,
अक्टूबर-दिसम्बर २००४
विद्यापीठ के प्रांगण में
अंक १०-१२
जैन अहिंसा और चिकित्सा जगत, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का आधुनिक विकास पार्श्वनाथ विद्यापीठ के सभागार में दि० २९.१२.०४ को अपराह्न ३.३० बजे से जैन अहिंसा और चिकित्सा जगत, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का आधुनिक विकास नामक विषय पर एक संगोष्ठी का संस्थान की ओर से आयोजन किया गया। कार्यक्रम का प्रारम्भ मुनिश्री मनीषसागर जी म०सा० के मंगलाचरण से हुआ। प्रारम्भ में डॉ० श्री प्रकाश पाण्डेय ने प्रो० क्रोमवेल क्रोफोर्ड (हवाई विश्वविद्यालय, होनेलूलू) का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया। इसके पश्चात् पार्श्वनाथ विद्यापीठ के निदेशक प्रो० महेश्वरी प्रसाद ने अतिथियों का स्वागत करते हुए संस्थान का परिचय दिया एवं इस संगोष्ठी के उद्देश्यों की चर्चा की।
मुख्य वक्ता के रूप में प्रो० क्राफोर्ड ने अपने को पक्का जैन बतलाते हुए महावीर से लेकर वर्तमान युग तक अहिंसा के व्यवहारिक पक्ष की चर्चा करते हुए इसके सभी पहलुओं पर प्रकाश डाला।
डॉ० प्रदीप जैन एवं डॉ० मधु जैन ने कहा कि चिकित्सा जगत् में हिंसा का जो भी प्रयोग किया जाता है, उसका उद्देश्य केवल मानव की रक्षा करना है और इस उद्देश्य से की गयी हिंसा को अहिंसा की कोटि में ही रखा जाना चाहिए।
डॉ० चूड़ामणि गोपाल ने कहा कि बहुजन हिताय बहुजन सुखाय के उद्देश्यसे जानवरों पर किये जाने वाले हिंसात्मक प्रयोग हिंसा की कोटि में नहीं रखे जा सकते। उन्होंने अहिंसा को लोकाचार से जोड़कर इसे वैचारिक क्रांति के लिये महत्त्वपूर्ण बताया। प्रो० वी० वी० मेनन ने कहा कि प्रमाद की अवस्था में ही हिंसा होती है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अन्तर्गत बेहतर लाभ के लिये ही कार्य किया जाता है। इसमें होने वाली हिंसा को अहिंसा की कोटि में इसी कारण रखा जा सकता है।
मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए प्रो० एस० लेले ने अहिंसा के व्यवहारिक पक्ष पर सुन्दर प्रकाश डाला। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में अमेरिका से पधारे डॉ० सुलेख जैन ने अहिंसा के प्रयोगात्मक पक्ष पर बल दिया। इस अवसर पर प्रो० क्राफोर्ड को स्मृति चिन्ह एवं इमेरिटस प्रोफेसर का सम्मान पत्र भी भेंट किया गया।
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इस अवसर पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कई प्राध्यापक तथा जैन समाज के कई गणमान्य व्यक्ति और शोध छात्र उपस्थित थे।
कार्यक्रम का संचालन डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय एवं धन्यवाद ज्ञापन पार्श्वनाथ विद्यापीठ के संयुक्त मंत्री श्री इन्द्रभूति बरड़ने किया।
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