Book Title: Sramana 2004 10
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 135
________________ छाया : सिद्धार्थपुरे राजा सुग्रीवो नाम मम परं मित्रम् । तस्य त्वं गच्छ लघु स्वयंवरा, अत्र किं बहुणा ? ||१६२।। अर्थ :- सिद्धार्थपुरमा राजा सुग्रीव मारो परम मित्र छे. जल्दीथी स्वयंवरा तेनी पासे तुं जा, अहीं घणावड़े शुं? । हिन्दी अनुवाद :- सिद्धार्थपुर का राजा सुग्रीव मेरा परम मित्र है। स्वयंवरा ऐसी तूं शीघ्र ही उनके पास जा, इधर बहुतों से क्या काम है ? गाहा : एवं च भणियमेत्ते सा कन्ना देव! तुम्ह नामेण । . निसुएणं चिय जाया हरिस-वसुल्लसिय-रोमंचा ।।१६३॥ छाया: एवं च भणितमात्रे सा कन्या देव ! तव नाम्ना। निशम्य एव जाता हर्ष-वशोल्लसितरोमांचा ।।१६३|| अर्थ :- अने आ प्रमाणे कहेवामात्रमा ते कन्या, हे देव ! तमारा नाम मात्रथी ज हर्षथी उल्लसित रोमाञ्चवाळी थई ! हिन्दी अनुवाद :- और इस प्रकार कहने मात्र से वह कन्या, हे देव ! आपके नाम मात्र से ही हर्ष से विकसित रोमाञ्चवाली हुई। गाहा: नाऊण तीए भावं राया संपेक्खिऊण मह वयणं । वज्जरइ, तं महाबल! वच्चसु सिद्धत्थनयरम्मि ॥१६४।। धेत्तुं सयंवरमिमं कणगवई भूरि-भूइ-संजुत्तं । कइवय - बल - संजुत्तो सोहण-तिहि-करण-नक्खत्तो ॥१६५।। छाया : ज्ञात्वा तस्या भावं राजा संपेक्ष्य मम वदनं । कथयति, त्वं महाबल! व्रज सिद्धार्थनगरे ।।१६४।। गृहीत्वा स्वयंवरं इमां कनकवतिं भूरि-भूति-संयुक्तां । कतिपय-बल-संयुक्तः शोभन-तिथि-करण-नक्षत्रः ।।१६५|| अर्थ :- राजा तेणीनां भावने जाणीने मारा मुख सामे जोईने का-“हे महाबल! सिद्धार्थनगरमां घणी सम्पतिथी युक्त, आ स्वयंवरा कनकवती लइने केटलाक सैन्यथी युक्त श्रेष्ठ तिथि-वार-नक्षत्रमा तुं जा." हिन्दी अनुवाद :- राजा ने उनके भाव को जानकर मेरे सामने देखकर कहा कि “हे महाबल ! इस स्वयंवरा कनकवती को लेकर बहुत सम्पत्ति और सैन्य से युक्त श्रेष्ठ मुहूर्तवाले तिथि-वार और नक्षत्र में तूं सिद्धार्थपुर नगर में जा।" गाहा : जं आणवेसि भणिउं तत्तो हं तं गहीय संचलिओ। जाव य कमेण एत्तो जोयणमेत्तम्मि संपत्तो ॥१६६॥ .30 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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