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गाहा :
ताजा न किंपि अन्नं देवी-वयणाओ मह पिया कुणइ ।
ताव अहिटेमि सयं रज्जं, पियरं विणासेत्ता ॥१८७॥ छाया:
तावद् यावद् न किमपि अन्यत् देवी-वचनात् मम पिता करोति ।
तावद् अधितिष्ठामि स्वयं राज्यं पितरं विनाशयित्वा ||१८७।। अर्थ :- तेथी देवीना वचनथी मारा पिता बीजु कांई पण न करे त्यांसुधीमां हुं स्वयं पितानो विनाश करीने राज्य नो अधिष्ठा बनी जाउं. हिन्दी अनुवाद :- अतः देवी के वचन से प्रेरित मेरे पिताजी मेरा कुछ अनिष्ट करें उनके पहले ही मैं स्वयं पिता का विनाश करके राज्य का स्वामी बन जाउँ। गाहा :
अहव न एयं जुत्तं विवेय-जुत्तस्स मज्झ काउं जे। ता बंधिऊण पियरं कट्ठ-हर-गयं अणुचरामि ॥१८८॥
छाया:
अथवा न एतद् युक्तं विवेक युक्तस्य मम कर्तुं यद् |
तस्माद् बद्ध्वा पितरं काष्ठ-गृह-गतं अनुचरामि ||१८८।। अर्थ :- अथवा विवेकयुक्त एवा मने आवु करवा माटे योग्य नथी तेथी पिताने बांधीने काष्ठगृहमा नांखु. हिन्दी अनुवाद :- अथवा विवेकयुक्त मुझे ऐसा करना उचित नहीं है, अत: पिताजी को बांधकर काष्ठगृह में डाल दूं। गाहा :
किं वा कणगवई चिय सह सुरहेणं नयामि जम-वयणे।
किं वा कटू-हरम्मि दोन्निवि घत्तेमि बंधेउं ? ॥१८॥ छाया:
किं वा कनकवतिं एव सह सुरभेन नयामि यम-सदने ।
किं वा काष्ठ-गृहे द्वयोरपि घातयामि बद्धवा ? ||१८९।। अर्थ :- अथवा शुं सुरभ साथे ज कनकवतिने यमसदनमां पंहोचाडु ? अथवा शुं बनेने बांधीने काष्ठ गृहमां नाखू ? के घात करू ? हिन्दी अनुवाद :- अथवा क्या सुरभ के साथ ही कनकवती को यमसदन में भेजूं ? अथवा क्या दोनों को बांधकर काष्ठगृह में डालूँ ? या घात करूं? गाहा :
अहवा किं मह इमिणा सेक्खामो ताव जं पिया कुणइ । अदिटु-पाणियम्मि न हु जुत्तं पाणहुम्मुयणं ॥१९॥
छाया:
अथवा किं मम अनया प्रेक्ष्ये तावत् यद् पिता करोति । अदृष्ट-पाणिये न खलु युक्तं उपानहोन्मोचनम् ।।१९०।।
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