Book Title: Sramana 2004 10
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 140
________________ गाहा : तो भणइ हसिय देवी एरिस-सत्तेण कह तुमं विहिणा। पिययम ! राया विहिओ नवरि किराडो कओ होन्तो ? ॥१८०॥ छाया: ततः भणति हसित्वा देवी ईदृश-सत्वेन कथं त्वं विधिना । प्रीयतम ! राजा विहितः अन्यथा किरातः कुतःकृतः अभविष्यत् ? ||१८०।। अर्थ :- तेथी देवी हसीने कहे छे, “विधातावड़े आवा प्रकारना सत्त्ववाळा एवा आपने राजा केम बनावाया ? वळी हे प्रियतम ! आप किरात क्याथी थया ? हिन्दी अनुवाद :- तब देवी मधुर वाणी से कहती है, “इस प्रकार निःसत्त्ववाले आपको विधाता ने राजा कैसे बनाया? पुनः हे प्रियतम आप किरात कैसे हुए? राणीनी अधमता गाहा : जेणेव सुप्पइट्टो एरिसओ उक्कडो पयावेण । तेणेव इमं सिग्धं कटु-हरे खिवसु जत्तेण ॥१८१॥ छाया: येनैव सुप्रतिष्ठः ईदृश उत्कट-प्रतापेन । तेनैव इमं शीघ्रं काष्ठ-गृहे क्षिपस्व यत्नेन ||१८१।। अर्थ :- जे उत्कृष्ट प्रताप बड़े आवा प्रकारनो सुप्रतिष्ठ थयो छे. तेथी यत्नवड़े जल्दी थी तेने कारागृहमा नांखो. हिन्दी अनुवाद :- उत्कृष्ट प्रतापवाला सुप्रतिष्ठ जैसे हुआ है, उसी तरह यत्न से उसे शीघ्र ही कारागृह में डाल दीजिए। गाहा : तत्तो य मज्झ पुत्तं जुवरायं ठाविउं पयत्तेण। अच्छसु विगयासंको रज्जं च ममं च माणंतो ॥१८२॥ छाया :। ततश्च मम पुत्रं युवराजं स्थापयितुं प्रयत्नेन । आस्यताम् विगताशंकः राज्यं च माम् च मन्यमान ।। १८२।। अर्थ :- त्यारपछी प्रयत्नपूर्वक निःशंक एवा आप मारा पुत्रने युवराज पद पर स्थापन को अने मारू मानो." हिन्दी अनुवाद :- तत्पश्चात् निःशंकित आप मेरे पुत्र को युवराज पद पर स्थापित करो और मेरा कहना सुनो।" गाहा : एवं देवी-वयणं सोउं पडिउत्तरं अदाऊणं । राया समुट्ठिऊणं अत्थाणे गंतुमुवविट्ठो ॥१८३।। छाया : एवं देवी-वचनं श्रुत्वा प्रात्युतरं अदत्वा । राजा समुत्थाय आस्थाने गत्वोपविष्टः ।।१८३।। 35 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162