Book Title: Sramana 2004 10
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 139
________________ अर्थ :- त्यारबाद राजा कहे छे “ज्येष्ठ पुत्र सुप्रतिष्ठ होते छते 'सुरभ' ने युवराज पद पर स्थापवा माटे योग्य न गणाय". हिन्दी अनुवाद तत्पश्चात् राजा कहता है, ज्येष्ठ पुत्र सुप्रतिष्ठ के होने पर सुरभ को युवराज पद पर स्थापित करना उचित नहीं है। पुत्र सुरभना युवराज पदनी प्रार्थना गाहा : छाया : भणितं देव्यास्ततः ज्येष्ठ स्थापने निवारयतु कः नु ? यदि तव अहं दयिता तदा सुरभं कुरु युवराजं ।। १७७ ।। अर्थ :- त्यारपछी देवीथी कहेवायु, “ज्येष्ठना स्थापनमां अही अटकावनार कोण छे ? जो हुं तमारी पत्नी होऊँ तो सुरभने युवराज बनावो.” हिन्दी अनुवाद : :- पुनः देवी ने कहा- "ज्येष्ठ के स्थापन में यहाँ आप को रोकनेवाला कौन है? यदि मैं आपकी पत्नी हूँ तो सुरभ को युवराज पद प्रदान कीजिए।" गाहा : छाया : भणियं देवीए तओ जेट्ठ-ट्ठवणे निहोडउ को णु ? | जइ तुज्झ अहं दइया ता सुरहं कुणसु जुययं ॥ १७७॥ छाया : तारना भणियं सुट्टु पिया तं सुलोयणे ! इमस्सऽणुरत्ता सामंत-महंतया किंतु सामन्त महन्तः सर्वे ||१७८ ।। तदा राज्ञा भणितं सुष्ठु प्रिया त्वं सुलोचने ! मम । किन्तु अस्याऽनुरक्ता अर्थ :त्यारे राजा वडे कहेवायु- "हे प्रिया ! सुलोचने ! मने ते सारू कह्यु. पण सुप्रतिष्ठने सामन्तो- महन्तो बघा ज खूब चाहे छे. हिन्दी अनुवाद :• किन्तु उस राजा द्वारा कहा गया कि "हे प्रिये ! सुलोचने ! तूने मुझे ठीक कहा, सुप्रतिष्ठ को सामन्तादि सभी जन बहुत चाहते हैं। गाहा : तह एसो सुसमत्थो एवं विहिए विहेज्ज तं अवमाणिओ ह जेणं ममावि रज्जं Jain Education International मज्झ । सव्वे ।। १७८ ।। तथा एषः सुसमर्थ एवं विहिते विदध्यात् तं किमपि । अपमानितः खलु येन ममापि राज्यं अपहरेत् ।।१७९।। अर्थ :- तथा आ अत्यंतसमर्थ छे, तेनु आ प्रमाणे कांइपण कराये छते अपमानित थयेल ते मारू राज्य पण लई ले. हिन्दी अनुवाद :- तथा वह अतिसमर्थ भी है। उसका इस प्रकार कुछ अनिष्ट किया जाय तो वह अपमानित मेरा राज्य भी ले लेवे।" 34 किंपि । अवहरेज्जा ।।१७९। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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