Book Title: Sramana 2004 10
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 137
________________ हिन्दी अनुवाद :- हर्ष से आतुरित हृदयवाले राजा ने अपने परिजनों को कहा - "शीघ्र ही बड़े महोत्सव के साथ नगर में कन्या का प्रवेश कराया जाये।" सुग्रीव - कनकवतीनो विवाह गाहा: तो परियणेण सम्मं तहत्ति संपाडियम्मि वयणम्मि । सोहण-लग्गे रन्ना परिणीया तत्थ कणगवइ ॥१७०॥ छाया: ततः परिजनेन सम्यक् तथा इति संपादिते वचने। शोभन-लग्ने राज्ञा परिणिता तत्र कनकवती ।।१७०।। अर्थ :- त्यार पछी परिजन बड़े सारी रीते ते वचन स्वीकारे छते शुभ लग्न मां राजा वड़े ते कनकवती परणाई. हिन्दी अनुवाद :- तत्पश्चात् परिजनों द्वारा अच्छी तरह से वचन स्वीकृत होने पर शुभ मुहूर्त में राजा का कनकवती के साथ विवाह हुआ। गाहा : सा रन्नो कणगवई कालेण अईव वल्लहा जाया । मह माऊए ठाणे विहिया अह पट्ट-बद्धा सा ॥१७१॥ छाया: सा राज्ञः कनकवती कालेन अतीव वल्लभा जाता । मम मातुः स्थाने विहिता अथ पट्ट-बद्धा सा ।।१७१।। अर्थ :- ते कनकवती कालक्रमे राजाने अत्यंत प्रिय थई. अने ते मारी माताना स्थाने पटराणी बनी. हिन्दी अनुवाद :- वह कनकवती दिन जाने पर राजा की अति प्रिय बन गई और मेरी माता के स्थान पर पटरानी बनी। गाहा : अइवल्लहपि वीसरइ माणूसं देस-काल-अंतरियं । वल्ली-समं हि पिम्मं जं आसन्नं तहिं चडइ ॥१७२॥ छाया: अतिवल्लभमपि विस्मरति मानुष्यं देश-कालान्तरितं । वल्ली-समं खलु प्रेम यद् आसन्नं तं आरोहति ।।१७२।। • अर्थ :- प्रेम ज निश्चे एवो छे, के ते देश-कालना दूरत्व थी अतिप्रियने भुली जाय छे, अने वेलडीनी जेम ते नजीकना पर वली जाय छे. हिन्दी अनुवाद :- प्रेम ही निश्चय से ऐसा है कि जो देश-काल के दूरत्व से अतिप्रिय को भी भूल जाता है और लता की तरह पास वाली चीज पर मुड़ जाता है। गाहा : वच्चंति वासराइं मह पिउणो तीए गाढ-रत्तस्स । सिढिलीकय-सेसोरोह-रमणि-गमणाइ-चेटुस्स ॥१७३॥ ____32 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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