Book Title: Sramana 2004 10
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 136
________________ छाया: यद आज्ञापयसि भणित्वा ततोऽहं तां गृहीत्वा सञ्चलितः । यावच्च क्रमेण इतो योजनमात्रे सम्प्राप्तः ।।१६६।। अर्थ :- 'जे आपनी आशा', ए प्रमाणे कहीने त्यारपछी हुं तेणीने लईने निकळ्यो अने क्रमवड़े योजनमात्र दूर आवी गयो. हिन्दी अनुवाद :- 'आपकी आज्ञा प्रमाण' इस प्रकार कहकर, कन्या को लेकर निकला हुआ मैं यहाँ से योजनमात्र दूर आ गया हूँ। गाहा : अज्ज रयणी-विरामे कइवय-तुरएहिं वेगवंतेहिं । उग्गिलिय आगओ हं तुम्हाण पियं निवेएमि ॥१६७।। छाया : अद्य रजनी-विरामे कतिपय-तुरगैः वेगवन्तैः । अग्रे भूत्वा आगतोऽहं युष्माकमपि यद् निवेदयामि ||१६७।। अर्थ :- रात पूर्ण थये केटलाक वेगवन्त घोडाओ वड़े आगळ थईने आवेलो छु जे हुं तमने जणावू छु. हिन्दी अनुवाद :- रात्रि पूर्ण होने पर वेगवन्त अश्वों द्वारा मैं यहाँ पर आया हूँ जो आपको विदित करता हूँ। गाहा : देव ! महमेयमागमण-कारणं पुच्छियं हि जं तुमए । एवं चवत्थियम्मि संपइ देवो पमाणंति ॥१६८॥ छाया: देव ! मामेतमागमन कारणं पृष्टं खलु यद् त्तया। . एवं च अवस्थिते सम्प्रतिः प्रमाणमिति ।।१६८।। अर्थ :- हे देव ! तमारा वड़े मारा आ आगमननु कारण पूछायु ते आ छे हवे आप प्रमाण छो. हिन्दी अनुवाद :- हे देव ! आप से मेरे आगमन का जो कारण पूछा गया वह यह है, अत: आप इसमें प्रमाण हो।" गाहा : हरिसाऊरिय-हियओ अह राया भणइ परियणं निययं । महया विच्छड्डेणं नयरे कन्नं पवेसेह ॥१६९॥ छाया : हर्षातुरित हृदयो अथ राजा भणति परिजनं निजकम् | महता वि देन नगरे कन्यां प्रवेशय ||१६९।। अर्थ :- हर्ष थी आतुरित हृदयवाळो राजा पोताना परिजनने कहे छे. “मोटा महोत्सव वड़े नगर मां कन्यानो प्रवेश करावो.” 31 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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