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हिन्दी अनुवाद :- और हे देवि ! पुण्यवान् लोगों को सभी चीज सुख के लिए होती है और निष्पुण्यवालों को तो वर्षासमय भी दुःख का कारण बनती है। गाहा :
ओ ! पेच्छ पेच्छ सुंदरि ! अद्ध-समारम्मि जर-कुडीरम्मि । ओघसर-सय-विराइय-डिंभ-समूहे
रुयंतम्मि ।।९९।। नियय-घरिणीए बाढं चोइज्जंतो पुणो पुणो वरओ । आवरण-रहिय-देहो हम्मंतो वारि-धाराहिं ।।१०।। उद्धसिय-रोम-कवो सीयल-अनिलेण संकइय-गत्तो । एसो दरिद्द-पुरिसो कहकहवि समारेइ कुडीरं ।।१०१।।
छाया:
ओ पश्य ! पश्य ! सुंदरि ! अर्ध - समारचिते जरत्-कुटीरे । ओघसर - शत - विराजित - डिम्भ - समूहे - रुदिते ॥९९।। निजक-गृहिण्या बाढं चोध्यमानः पुनः पुनः वराकः । आवरण-रहित-देहो हन्यमान
वारि-धाराभिः ।।१०।। उदघुषित-रोम-कूपः शीतलानिलेन सङ्कुचित-गात्रः ।
एषो दरिद्र-पुरुषः कथं कथमपि समारचयति कुटीरम् ||१०१।। अर्थ :- वळी हे सुन्दरी जो ! जो ! अर्धा ठांकेला-तूटेला झूपडाओमां वरसादनी धारा पडता गरीब बालको रडी रहया छे। पोतानी पत्नीवड़े वारंवार अत्यंत प्रेरणाकरातो, आवरणरहित देहवाळो, पाणीनी धारावडे कंपतादेहवाळो, उंचा थयेला रूंवाटावाळो, ठंडा पवनथी संकुचित गात्रवाळो आ दरिद्र पुरुष केमे करीने घरकाम समारे छे. हिन्दी अनुवाद :- और भी हे सुन्दरी ! देखो, देखो ! अर्ध टूटी झोपड़ियों में वर्षा का पानी गिरने से गरीब बालक रो रहा है। अपनी पत्नी से बार-बार प्रेरित अनावृत्त देहवाला, पानी की धार से कम्पित देहवाला, कंपित रोमवाला, ठंडे पवन से संकुचित गात्रवाला यह दरिद्र पुरुष कष्ट से घर ठीक करता है। गाहा :
ओलंबिय - कन - जुयं हम्मंतं गरुय - वारि -धाराहिं ।
ओलुग्ग - भग्ग - देउल- कोण - गयं रासभं-नियसु ।।१०२।। छाया :
उल्लंबित-कर्ण-युगं हन्यमान गुरुक-वारि-धाराभिः ।
(छायारहितं) निस्तेज-भग्न-देवकुल-कोणगतं रासभम् पश्य ।।१०२।। अर्थ :- धोधमार वारिधारावड़े हणातो,नमीगयेला कर्णयुगलवाळो निस्तेज भांगेला देवकुलना खूणामां रहेला रासभ ने तु जो. हिन्दी अनुवाद :- अनवरत वर्षा से परेशान, झुके हुए कर्णयुगलवाला, निस्तेज भग्न देवकुल के कोने में रहे हुए रासभ को तो देख।
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