Book Title: Sramana 2004 10
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 119
________________ अर्थ :- आ प्रमाणे ज्यां सुधी राजा राणीनी साथे वात करे. छे. त्यांसुधी मां जल्दी थी चरणकमलमां पडीने अभा थयेला वसुदत्ते हवे कहेवामाटे आरंभ का. हिन्दी अनुवाद :- इस तरह राजा रानी के साथ बात करता है तभी वहाँ शीघ्रता से आये वसुदत्त ने कहना प्रारम्भ किया। दामोदर दूतनुं आगमन गाहा : देवेण जो उ पुट्विं पट्ठविओ आसि चंप-नयरीए । सिरि-कित्तिवम्म-रन्नो दूओ दामोदरो नाम ॥१०७।। छाया: देवेन यस्तु पूर्वस्मिन् प्रस्थापित आसीत् चम्पानगर्याम् । श्री कीर्तिवर्म-राज्ञो दूतो दामोदरो नामा ।।१०७।। अर्थ :- “जे पहेला देववड़े चम्पानगरीमा प्रयाण करायो हतो ते श्रीकीर्तिवर्मराजानो दूत दामोदर नामनो आव्यो छे.” हिन्दी अनुवाद :- प्रथम आप पूज्य द्वारा चंपापुरी में प्रयाण कराया था वह श्रीकीर्तिवर्मराजा का दूत दामोदर यहाँ पर आया है। सभा मंडपमां राजानु आगमन एवं देवी भवनमा विद्युत्पात गाहा: सो देव-पाय-दसण-सुह-कंखी आगओ दुवारम्मि । चिट्टइ, एवं च ठिए देवो पमाणंति तं सोच्चा ॥१०८।। दिट्ठीए आपुच्छिय देविं सहसत्ति उडिओ राया। अत्थाण-मंडवस्स उ आसन्नो जाव संपत्तो ।।१०९।। ताव य विज्जु-चमुक्कारणंतरं चंड-चडड-संसहो। आसन्नो संजाओ भेसिय-नर-नारि-संघाओ।।११०।। छाया : स देव - पाद - दर्शन - सुख - कांक्षी आगतो द्वारे । तिष्ठति, एवं च स्थिते देवः प्रमाणमिति तं श्रुत्वा ।।१०८।। दृष्ट्या आपृच्छय देविं सहसा इत्युत्थितो राजा। आस्थान - मण्डपस्य त्वासनो यावत् सम्प्राप्तः ।।१०९|| तावच्च विधुच्चमत्कारानन्तरं चण्ड चटट संशब्दः । आसन्नः सजातो भेषितो नर • नारि सयातः ||११०।। अर्थ :- देवना चरणकमल ना दर्शन थी सुखाभिलाषी द्वारपर आवेलो उभो छे. आ प्रमाणे रहे छते 'देव प्रमाण छे', ए प्रमाणे तेना वचन सांभळीने सहसा दृष्टिवड़े राणीने पूछीने उभो भयेलो राजा जेटलीवारमा सभामंडपमा आव्यो तेटलीवारमा एकाएक विजलीनो चमकार तथा प्रचण्ड गड़गड़ शब्द थयो। बादळोनी आवी गर्जनाथी नर-नारीनो समूह डरेलो थयो. हिन्दी अनुवाद :- और देव के चरणकमल के दर्शन का सुखाभिलाषी द्वार पर खड़ा है, इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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