Book Title: Sramana 2004 10
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 131
________________ अर्थ :- हवे क्यारेक कोईवार सभामण्डपमा रहेला राजाने जल्दीथी नमस्कार करीने सूभग द्वारपाल आ प्रमाणे कहे छे. हिन्दी अनुवाद :- एक बार सभामण्डप में विराजित राजा को शीघ्रता से नमस्कार करके सुभग नामक द्वारपाल इस तरह कहता है। दूतनुं आगमन गाहा : चंपापुरीओ सामिय ! महंतओ कित्तिधम्म-नरवइणो । देवस्स दंसणत्थं चिट्ठइ. पडिहार-भूमीए ॥१४९।। छाया: चम्पापुरीतः स्वामिन् ! महान्-कीर्तिधर्म-नरपतेः । देवस्य दर्शनार्थं तिष्ठति प्रतिहार-भूम्याम् ||१४९।। अर्थ :- “हे स्वामिन् ! चम्पापुरीथी महान् कीर्तिधर्मराजानो दूत आपना दर्शनमाटे द्वार पर उभो छे.” हिन्दी अनुवाद :- हे स्वामिन् ! चम्पापुरी से महान् कीर्तिधर्मराजा का दूत आपके दर्शनार्थ द्वार पर खड़ा है। गाहा : सिग्धं पवेससत्ति य भणिए सो राइणा अणुन्नाओ। आगम्म विहिय-विणओ उवविट्टो उचिय-ठाणम्मि ॥१५०।। छाया: शीघ्रं प्रवेशयेति च भणिते स राजा अनुज्ञातः। आगम्य विहित - विनय उपविष्ट उचित-स्थाने ।।१५011 अर्थ :- “जल्दी आवे" ए प्रमाणे राजावड़े अनुज्ञा पामेलो ते कहेवाये छते आवीने करेला विनयवाळो उचित स्थान पर बेठो. हिन्दी अनुवाद :- "शीघ्र आवे" इस प्रकार राजा की आज्ञा प्राप्त कर आया हुआ विनयान्वित दूत उचित स्थान पर बैठा। गाहा : तंबोलाइ-पयच्छण-पुव्वं सो राइणा समुल्लविओ। आगमण-कारणं भो ! साहसु तो भणिउमाढत्तो ॥१५१।। छाया : ताम्बूलादि - प्रदान - पूर्वं सः राज्ञा समुल्लापितः । आगमन - कारणं भो ! कथय ततो भणितुमारब्धः 11१५१|| अर्थ :- ताम्बूलादि आपवा पूर्वक ते राजावड़े कहेवायो - “हे महानुभाव ! तारा आगमन- कारण कहे ? त्यारपछी ते कहेवा माटे तैयार थयो." हिन्दी अनुवाद :- ताम्बूलादि देने के पश्चात् राजा द्वारा कहा गया - हे महानुभाव तेरे आगमन का कारण क्या है ? मुझे कहो; तत्पश्चात् वह कहने को तत्पर हुआ। 26 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162