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छाया:
गुरु-पराक्रम-निर्जित-रिपु-बल-पदाति-चक्र-कृतरक्षा शौण्डीरा
नर-पतयः सोमयशा-sऽदित्ययश-प्रमुखाः ।।१३४।। यदि तावत्ते च निहता पाप-कृतान्तेन निघृण-मनसा । अनिवारित-प्रसरेण का गणना
अन्य-लोके? ||१३५।। अर्थ :- मोटा पराक्रम थी जीत्या छे शत्रुना सैन्य-पायदळ चक्रादिने तथा पायदळादि थी पोतानी रक्षा करता शूरवीर राजाओ सोमयशा-आदित्ययश वगेरे प्रमुख राजाओ पण कठोर मनवाळा पापी कृतान्त वड़े हणाया छे. तो पछी सामान्य जननी तो गणना ज शुं करवानी ? हिन्दी अनुवाद :- बड़े पराक्रम से शत्रु सैन्य को जीतनेवाले और शत्रु की सेना एवं चक्रादिक को जीतने वाले तथा उसकी सेना से अपनी रक्षा करनेवाले शूरवीर सोमयश-आदित्ययश आदि प्रधान राजा भी कठोर मनवाले पापी कृतान्त द्वारा हत किए गए हैं, तो फिर सामान्य जन की क्या तुलना?
गाहा:
जेसिपि य तित्तीसं आउयमुदहीण पवर-देवाणं ।
तेसिपि होइ चवणं का गणणा अन्न-सत्तेसु ? ॥१३६।। छाया:
येषामपि च त्रयस्त्रिंशत् आयुष्यमुदधीनां प्रवर-देवानाम् ।
तेषामपि भवति च्यवनं, का गणना अन्य-सत्त्वेषु ? ||१३६।। अर्थ :- जे श्रेष्ठ देवोनुं तेत्रीस सागरोपमनुं आयुष्य होय छे तेओनु पण च्यवन थाय छे. तो पछी अन्य-प्राणीओने विषे शुं गणना ? हिन्दी अनुवाद :- जिनका आयुष्य तैंतीस सागरोपम का है वैसे उत्तमोत्तम देवों का भी च्यवन हुआ है तो फिर अन्य प्राणियों की क्या गिनती? गाहा:
भवणवइ-वाणमंतर-जोइसियाणं विमाण-वासीणं । जइ नाम होइ चवणं का गणणा मणुय-लोयम्मि ? ॥१३७॥
छाया:
भवनपति-वाणव्यन्तर-ज्योतिष्कानां विमान-वासिनाम ।
यदि नाम भवति च्यवनं का गणना मनुज लोके ? ||१३७।। अर्थ :- भवनपति, वाणमंतर, ज्योतिष अने वैमानिक देवोनुं पण जो च्यवन थाय छे. तो मनुष्यलोक विषे तो शुं गणना ? हिन्दी अनुवाद :- भवनपति, वाणमंतर, ज्योतिष और वैमानिक देवों का भी च्यवन हुआ है, तो मनुष्यलोक की क्या गिनती ? गाहा :
सो कोवि नत्थि जीवो ति-लोय-मज्झम्मि जो वसं न गओ। मच्चुस्स पाव-मइणो मोत्तुं सिद्धे सुह-समिद्धे ॥१३८॥
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