Book Title: Sramana 2004 10
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 121
________________ गाहा : छाया : - दृष्ट्वा भूमि पतितं नर नाथं मूर्च्छितं विगत - चेष्टम् । सञ्जातः परिजनाक्रन्द भूरितरः अर्थ :- भूमिपर पडेला चेष्टावगरना मूर्च्छित राजाने जोईने परिजनो नो आक्रन्दन शब्द पण अत्यंत वधी गयो. भूमि पर निश्चेष्टित, मूर्च्छित राजा को देखकर परिजनों के आक्रन्दन शब्द भी दट्ठूण भूमि- पडियं नर-नाहं मुच्छियं विगय-चेट्टं । संजातो परियण-अक्कंद- सद्दोवि ॥ ११४ ॥ भूरि-तरो हिन्दी अनुवाद : अत्यंत बढ़ गये। गाहा : छाया : छाया : पास- द्विय पुरिसेहिं सीयल-पवणाइयम्मिं विहियम्मि । रायावि विगय - मुच्छो विलविउमेवं समाढत्तो ॥ ११५ ॥ पार्श्व स्थित पुरुषैः राजाऽपि विगत - मूर्च्छः शीतलपवनादिके विहिते | विलपितुमेवं समारब्धः ।।११५|| अर्थ :- पासे रहेला पुरुषोवडे शीतलपवनादिक विंझाये छते गयेली मूर्च्छावाळो राजा आ प्रमाणे विलाप करवा लाग्यो. - - : हिन्दी अनुवाद पार्श्व पुरुषों द्वारा शीतलपवनादिक द्वारा मन्द मन्द वायु आने पर निर्गतमूर्च्छावाला राजा इस प्रकार विलाप करने लगा। गाहा : शब्दोऽपि ||११४|| हा ! वल्लहि ! हा सामिणि ! हा जीविय-दायगे ! विसालच्छि ! हा मह हियय-निवासिणि ! हा ! कत्थ गया ममं मोत्तुं ? ॥ ११६॥ छाया : हा ! वल्लभे ! हा ! स्वामिनि ! हा जीवित-दायके ! विशालाक्षि ! हा ! मम हृदय-निवासिनि ! हा ! कुत्र गता माम् मुक्त्वा ? ||११६ ॥ अर्थ :- हा ! वल्लभे ! हा ! स्वामिनि ! हा जीवितने आपनारी ! हे विशालाक्षि ! हा ! मारा हृदयमां रहेनारी अरे ! मने छोडीने तुं क्यां गई ? हिन्दी अनुवाद :- हा ! वल्लभे ! हे स्वामिनी ! हा ! जीविताधार ! हा ! विशालाक्षी ! हे ! हृदयेश्वरी ! अरे तूं मुझे छोड़ कर कहाँ गई ? गाहा : हा गोर - देहि ! हा पिहू-पओहरे ! हा हा कह निग्धिण विहिणा तुह उवरिं Jain Education International सुकोमल - सरीरे ! । पडिया विज्जू ? ॥ ११७ ॥ हा ! गौर देहि ! हा! पृथु-पयोधरे ! हा सुकोमल हा कथं निघृण विधिना तवोपरि पतिता 16 For Private & Personal Use Only शरीरे विद्युत् ? ।।११७ ।। www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162