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हिन्दी अनुवाद :- मेरा आगमन होने पर भी तुम अपनी प्रियाओं को छोड़कर क्यों चले गए? ऐसे रोष से गर्जारव करते हुए मेघ मुसाफिरों के हृदय को आंदोलित करते हैं। गाहा :
धवल-बलाया-दाढो विज्जु-लया-चवल-दीह-जीहालो ।
कसण-सरीरो धावइ पहियाणं पाउस-पिसाओ ।।१२।। छाया:
धवल-बलाका-दंष्ट्रा-विद्युत-लता-चपल-दीर्घ-जिहावान् ।
कृष्ण-शरीरो धावति पथिकानां प्रावृट् पिशाचः ।।१२।। अर्थ :- धवलबलाका जेवी. दाढीवाळो. बिजली नी लता जेवो चंचल, लांबी जीभवाळो. काळा शरीरवाळो पिशाचरूपी मेघ पथिकोनी पाछळ दोडे छे. हिन्दी अनुवाद :- श्वेत बलाका जैसी दाढ़ीवाला, बिजली की लता जैसा चंचल, लंबी जीभवाला, कृष्ण शरीरवाला, पिशाच रूपी मेघ पथिकों के पीछे दौड़ता है। गाहा :
- पेच्छ सुर-चाव-निग्गय-धारा-बाणेहिं विरहि-हिययाई ।
विंधंतो उवहसइव पंचसरं पंच-सर-सहियं ।।१३।। छाया :पश्य
सुर-चाप-निर्गत-धारा-बाणैर्विरहि-हृदयानि । विंध्यत् उपहसति इव पञ्चशरं पंच-सर-सहितम् ||१३|| अर्थ :- प्रिये ! जो, इन्द्र धनुष्यथी निकळेल धारा रूप बाणोथी वियोगीओनां हृदय ने बींधतो आ वर्षाऋतु पांच बाण सहित कामदेव नो उपहास करे छे." हिन्दी अनुवाद :- प्रिये ! देख, यह इन्द्र धनुष से निकलती धारा रूपी बाणों से वियोगियों के हृदय को व्यथित करती यह वर्षाऋतु पांच बाणों से युक्त कामदेव का उपहास करती है।" गाहा :
एत्थंतरम्मि देवी नर-नाहं भणइ हरिसिया संती । सेस उऊणं नर-वर ! अब्भहिओ पाउसो एसो ।।९४।।
छाया:
अत्रान्तरे देवी नर • नाथं भणति हर्षिता सन्ती।
शेष - ऋतूनां नर - वर ! अभ्यधिकः प्रावृट् एषः ||१४|| अर्थ :- त्यां वच्चे ज प्रसन्न थती देवी राजाने कहे छे के हे नरवर ! आ वर्षाऋतु बधी ऋतुमां श्रेष्ठ छे. हिन्दी अनुवाद :- तब बीच में ही प्रसन्न होती हुई देवी राजा को कहती है - "हे नरवर ! यह वर्षाऋतु सर्व ऋतुओं में श्रेष्ठ ऋतु है।" गाहा :
मोत्तूण विरहिणी-जणं सुहओ जं एस कामुय-जणस्स । पामर-वच्छ-तणोसहि-पमुहाणं तहय जीवाणं ।।९५।।
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