________________
छाया:
मम-संगम-गुरुक-समुल्लसन्-मनहर-पयोधरा झटिति।
पश्य प्रिये ! सजाता तव सदृशा कुबेर-दिक् ।।८५|| अर्थ :- “हे प्रिये ! मारा संगमथी मोटा उल्लसित, मनोहर पयोधरवाळी तुं थई छे, तेम आ मेघ ना संगम थी उत्तर दिशा पण पयोधर वाळी थई छे." हिन्दी अनुवाद :- "हे प्रिये ! मेरे संगम से अति उल्लसित मनोहर पयोधरवाली तूं हुई है, उसी तरह मेघ के संगम से उत्तरदिशा भी पयोधरवाली हुई है।" गाहा :
तरलत्तं नयणाणं कुडिलत्तं सुतणु ! तुज्झ केसाणं ।
अणुकरइ पेच्छ विज्जू घण-मज्झे चिगिचिगायन्ती ।।८।। छाया:
तरलत्वं नयनानां कुटिलत्वं सुतनु ! तव केशानाम् । . अनुकरोति पश्य विद्युत् घन - मध्ये प्रकाशयन्ती ।।८६|| अर्थ :- हे सुतनु प्रिये ! मेघनी मध्यमां प्रकाशती आ विजली तारा नेत्रोनी चपळतानुं अने केशकलापोनी कुटिलपणानुं अनुसरण करे छे. हिन्दी अनुवाद :- हे सुतनु प्रिये ! मेघ के मध्य में चमकती यह बिजली तेरे नेत्रों की चपलता का और केशकलाप की कुटिलत्व का अनुसरण करती है। गाहा :
अन्नं च पिय ! पेच्छसु परिब्भमंतेहिं . इंदगोवेहिं । .. नज्जइ पाउस-लच्छी पचुनिया महि-यले पडिया ।।८७।। छाया :
अन्यच्च प्रिय ! पश्य परिभ्रमन्तैः इन्द्रगोपैः ।
ज्ञायते प्रावट - लक्ष्मी, प्रचूर्णिता महि - तले पतिता ।।८७।। अर्थ :- वळी हे प्रिये ! जो आ भमता इन्द्रगोपवड़े वर्षारूपी लक्ष्मी चूर-चूर थईने पृथ्वी तल पर पड़ी गई छे. हिन्दी अनुवाद :- और भी हे प्रिये ! देखो, यह घूमते हुए इन्द्रगोप द्वारा वर्षारूपी लक्ष्मी चूर-चूर होकर पृथ्वीतल पर गिर पड़ी है। गाहा :
पाउस-नरिंद-नव-संगमम्मि जायम्मि भूमि-महिलाए । हरियंकुर-च्छलेणं पेच्छसु रोमंचओ जाओ ।।८।।
छाया:
प्रावृट्-नरेन्द्र-नव-सङ्गामे जाते भूमि-महिलायाम् । हरिताकुर-च्छलेन पश्यत्सु (पश्य) रोमाञ्चक जातः ।।८८।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org