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हास्यशील दीन मनुष्य बड़े दशे दिशा मां सिञ्चायेल घणा कादववाळी अने कादवथी दुर्लध्य मार्गवाळी वर्षाऋतु आवी. हिन्दी अनुवाद :- ग्रीष्मऋतु के बीत जाने पर संपूर्ण पृथ्वी मंडल शीतल बना और चारों ओर मण्डूक की आवाज सुनाई देने लगी, बहते हुए प्रवाह के कलकल आवाजों से दिशाएं बधिर बन गईं तथा गंभीर गर्जना करते मेघ के दर्शन से मयूर समूह नृत्य करने लगा, विकसित पुष्पों से सुशोभित, कदम्बवृक्ष के समूह से मनोहर वन समूहवाली, मोगरा-चंपादि विविध पुष्पों की रजयुक्त सुगंधित वायु वहां बहने लगी, नदी के किनारे पर बालकों द्वारा बनाए हुए रेत के मंदिरों से मनोहर, कृषकजनों से पूजित बलीवर्दोवाली, हास्यशील मनुष्य द्वारा दशों दिशा में सिञ्चित बहुत कीचड़वाली और कादव से दुर्लंघ्य मार्गवाली वर्षाऋतु आयी। गाहा :
एयारिसम्मि नव-पाउसम्मि पत्तम्मि अन्न-दिवसम्मि । नर-नाहो सुग्गीवो विहिणा कय-भोयणो संतो ।।७९।। चंदण-चच्चिय-देहो परिहिय-मिउ-सह-निम्मल-दुगूलो । तंबोल-बग्ग-हत्थो समागतो देवि-भवणम्मि ।।८०।।
___राजानु देवी भवनमां गमन
छाया:
एतादृशे नव-प्रावृषि प्राप्ते अन्य-दिवसे । नरनाथः सुग्रीवो विधिना कृत-भोजनः सन् १७९|| चन्दन-चर्चित-देहः परिहित मृदु श्लक्ष्ण-निर्मल-दुकूलः ।
ताम्बुल-वर्ग-हस्तः समागतो देवी-भवने ।।८।। अर्थ :- आवा प्रकार नो नूतन वरसाद प्राप्त थये छते अन्य-दिवसे विधिपूर्वक करेला भोजन वाळो, चन्दन थी पूजित देहवाळो, मृदु-रेशमी निर्मल दुकूलवाळो, ताम्बुल वर्ग ने ग्रहण करेला हाथ वाळो, राजा सुग्रीव देवी भवनमां आव्यो. हिन्दी अनुवाद :- इस प्रकार नूतन वर्षा आने पर एक दिन विधिपूर्वक भोजन कर, चन्दन से अर्चित देहवाला, कोमल और निर्मल रेशमी दुकूलवाला, ताम्बूलादि से युक्त हाथवाला सुग्रीव राजा देवी भवन में आया। गाहा :
सत्त-तले पासाए आरूढो उवरिमाए भूमीए । देवीए कय-विणओ महरिह-सेज्जाए आसीणो ।।८१।।
छाया:
सप्त-तले प्रासादे आरुढो उपरितमायां भूम्याम् । . देव्या कृत-विनयो ।
महर्घ्य-शय्याया-मासीनः ।।८१।। अर्थ :- सातमाळनां प्रासादमां उपरनी भूमि पर आवेलो, देवी वड़े करेला विनयवाळो महाऋद्धिवाळी शय्यामां बेठेलो
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