Book Title: Sramana 2004 10
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 100
________________ साहित्य सत्कार : ९५ पटेरियाजी गढ़ाकोटा दीपिका, लेखक - डॉ० भागचन्द्र जैन ' भागेन्दु'; प्रकाशक - श्री भागचन्द्र इटोरिया सार्वजनिक न्यास, स्टेशन रोड, दमोह (मध्यप्रदेश); प्रथम संस्करण; आकार - डिमाई; पृष्ठ ४०; मूल्य - १० /- रुपया मात्र । - मध्यप्रदेश स्थित बुन्देलखण्ड क्षेत्र में अनेक दिगम्बर अतिशय क्षेत्र विद्यमान हैं, जिनमें अतिशय क्षेत्र पटेरिया गढ़ाकोटा भी एक है। इस क्षेत्र के प्रायः सभी मंदिर १८वीं - १९वीं शती के हैं। इनका निर्माण स्थानीय राजमान्य श्रेष्ठियों द्वारा हुआ है। पटेरिया गढ़ाकोटा स्थित पार्श्वनाथ जिनालय का भी निर्माण इसी श्रृंखला की एक कड़ी है। विद्वान् लेखक ने इस मंदिर में अवस्थित सभी सलेख प्रतिमाओं (१.१ प्रतिमाओं) का मूल पाठ और मंदिर का इतिहास अत्यन्त संक्षिप्त किन्तु सारगर्भित रूप में प्रस्तुत किया है तथा साथ ही यहां के ६ अन्य जैन मंदिरों का भी विवरण दिया है। वस्तुतः यह एक प्रकार से पटेरियाजी तीर्थ का गाइड बुक कहा जा सकता है। लेखक के इस उपयोगी ग्रन्थ से प्रेरणा लेकर इस क्षेत्र में अवस्थित अन्य तीर्थों पर भी इसी प्रकार संक्षिप्त किन्तु प्रामाणिक पुस्तकें लिखे जाने की आवश्यकता है। ऐसे उपयोगी पुस्तक के प्रणयन के लिये विद्वान् लेखक एवं उसे प्रकाशित कर अल्प मूल्य में वितरित करने हेतु प्रकाशन संस्था दोनों ही बधाई के पात्र हैं। सम्पादक अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा का अतीत, लेखक - डॉ० त्रिलोक चन्द कोठारी ; प्रकाशक - त्रिलोक उच्चस्तरीय अध्ययन एवं अनुसंधान संस्थान, कोटा, राजस्थान; प्रथम संस्करण २००४ई; आकार - डिमाई; पृष्ठ - १६+१६८; पक्की बाइंडिंग; मूल्य - २००/- रुपये । अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा देश की पुरातन सामाजिक एवं धार्मिक संस्था रही है जो सन् १८९५ में अस्तित्त्व में आयी । १९वीं शती के उत्तरार्ध में देश में उत्पन्न राष्ट्रीय पुनर्जागरण से प्रभावित हो कर दिगम्बर समाज के कर्णधारों ने इस संगठन को जन्म दिया। मध्यममार्गी इस संगठन ने जहां एक ओर पुरातन अतिवादी विचारधारा को अस्वीकार किया वहीं नवीन प्रतिक्रियावादी विचारों का विरोध किया। यद्यपि इस संगठन के विरोधस्वरूप समय-समय पर विभिन्न संगठन बने और एक समय ऐसा भी आया कि यह सर्वप्राचीन संगठन इतिहास बन गया, फिर भी अपने स्थापना काल से लेकर १९८० ई० तक ८५ वर्षों के दीर्घावधि में इस संगठन ने जो कार्य किया वह अपने आप में एक अनूठा उदाहरण है। पुस्तक के लेखक डॉ० कोठारी स्वयं इस संस्था से लम्बे समय तक जुड़े रहे हैं, फिर भी उन्होंने अपनी लेखनी द्वारा कहीं भी पक्षपातपूर्ण रवैया नहीं अपनाया है और यही इस पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता है। दिगम्बर समाज की सर्वप्राचीन इस संस्था का इतिहास प्रस्तुत कर डॉ० कोठारी ने ऐसा महत्त्वपूर्ण कार्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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