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गाहा :
छाया :
छाया :
लोकस्य ।
एषा खलु तावत्पल्ली-आवासो निर्घृणस्य त्वमपि
तस्य प्रभो रनन्य-सौजन्य- दया- कलितः ||६१|| अर्थ :- आ पल्ली - आवास निष्ठुर लोको माटे छे, अने तमे तेना स्वामी, तमे तो अनन्य सौजन्य अने दयायुक्त ! अही रहो छो.
हिन्दी अनुवाद :- यह पल्लि आवास निष्ठुर लोगों के लिए है और आप उनके स्वामी, आप तो अनन्य सौजन्य और दयायुक्त ! यहाँ रहते हो ।
गाहा :
एसा हु ताव पल्ली आवासो निग्घिणस्स लोयस्स । तुम्भेवि तस्स पहुणो अणन्न सोजन्न दय - कलिया || ६१ ॥
छाया :
श्रीमद्धनेश्वरमुनीश्वरविरचितं
सुरसुंदरीचरिअ
द्वितीय परिच्छेद
एसो न सम्म- जोगो अहिवइ-भिच्चाण मह ठियं चित्ते ।
जं सोय सच्च दक्खिन्न - वज्जियाणं इमं ठाणं ।। ६२ ।।
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एषो न सम्यग्योगोऽधिपति भृत्यानां मम स्थितं चित्ते । यत् शौच सत्य दाक्षिण्य वर्जितानामिदं
स्थानम् ||६२||
अर्थ :- आ स्वामी अने सेवकनो सम्यग् योग मारा चित्तमां बेसतो नथी- आ स्थान तो पवित्रता - सत्य-अने दाक्षिण्यथी रहित लोकोनुं छे.
हिन्दी अनुवाद :- यह स्वामी और सेवक का सम्यग् योग मेरे चित्त में बैठता नहीं है। यह स्थान तो पवित्रता - सत्य और दाक्षिण्यता से रहित है।
गाहा :
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भिल्लाणं नाहावि हु जं एरिस-गुण- गणेण संजुत्ता । एवं मणम्मि भावइ महंतमच्छेरयं
भिल्लानां नाथोऽपि खलु यद्-इदृश गुण-गणेन एवं मनसि भावयति महान्तमाश्चर्यं
संयुक्तः । मह्यम् ||६३ ||
अर्थ :- आवा प्रकारना गुणगणथी युक्त भिल्लोनो स्वामी होय ते मारा मनने मोटु आश्चर्य लागे छे.
मज्झ ।।६३ ।।
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