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९६ : श्रमण, वर्ष ५५, अंक १०-१२ / अक्टूबर-दिसम्बर २००४
सम्पन्न किया है जिसे जनमानस में लम्बे समय तक याद किया जायेगा। पुस्तक की साजसज्जा अत्यन्त आकर्षक तथा मुद्रण अत्यन्त मनोरम है। डॉ० कोठारी की इस पुस्तक से प्रेरणा लेकर श्वेताम्बर मूर्तिपूजक और स्थानकवासी समाज भी अपने संगठनों का इसी प्रकार से अपना-अपना इतिहास प्रस्तुत करेंगे, ऐसी आशा है।
सम्पादक
सेठ मोतीशाह, लेखक - डॉ० रमनलाल ची० शाह, प्रकाशक - श्री मुम्बई जैन युवक संघ, ३८५, सरदार वी०पी० रोड, रसधारा कोआपरेटिव हाउसिंग सोसायटी, मुम्बई ४००००४; तृतीय संस्करण, फरवरी २००२ ई०; आकार डिमाई; पृष्ठ १० + ५०; पक्की बाइडिंग; मूल्य ३०- रुपये मात्र ।
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भायखला, मुम्बई स्थित भव्य एवं विशाल जिनमंदिर के निर्माता, शत्रुंजय पर्वत की खाई को पाटकर उस पर भव्य जिनालय का निर्माण कराने वाले खरतरगच्छीय सुश्रावक श्रेष्ठी मोतीशाह नाहटा का विस्तृत जीवनपरिचय वर्षों पूर्व स्व० मोतीचन्द गिरधर भाई कापड़िया द्वारा गुजराती भाषा में लिखा गया था। उसी पुस्तक के आधार पर श्री रमन भाई ने साधर्मिक बन्धुओं के आग्रह से संक्षिप्त रूप में (गुजराती भाषा में) प्रस्तुत पुस्तक तैयार किया है। इसकी लोकप्रियता का सहज उदाहरण है इसका तृतीय संस्करण के रूप में प्रकाशित होना । लेखक और प्रकाशक दोनों से यह अनुरोध है कि वे इस महत्त्वपूर्ण पुस्तक का हिन्दी अनुवाद भी प्रकाशित करें ताकि हिन्दी भाषाभाषी जन भी अपने इस महान् पूर्वज के गौरव गाथा की जानकारी प्राप्त कर उससे प्रेरणा ले सकें।
सम्पादक
सकारात्मक अहिंसा : शास्त्रीय और चारित्रिक आधार, लेखक - श्री कन्हैयालाल लोढ़ा, प्रकाशक - प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर, प्रथम संस्करण २००४, पृष्ठ सं० ३६+२१७, मूल्य - २००/- रुपये ।
जैनधर्म के प्रख्यात् विद्वान् श्री कन्हैयालाल जी लोढ़ा द्वारा लिखित एवं प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर द्वारा प्रकाशित उक्त पुस्तक सकारात्मक अहिंसा के शास्त्रीय और चारित्रिक आधार को प्रस्तुत करती है । इस पुस्तक में लेखक ने अहिंसा के सकारात्मक स्वरूप में करुणा, सेवा, सहायता, वात्सल्य, अनुकम्पा, मैत्रीभाव आदि मूल्यों का न केवल सम्यक्तया समावेश किया है अपितु उनके शास्त्रीय उद्धरणों को भी प्रस्तुत किया है। जैन दर्शन का केन्द्रीय सिद्धान्त अहिंसा शाब्दिक दृष्टि से चाहे नकारात्मक हो लेकिन उसकी अनुभूति सदैव ही सकारात्मक रही है। सामान्यतया दया, दान, करुणा, वात्सल्य आदि को पुण्यास्रव और पुण्यबंध का हेतु माना जाता है किन्तु
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