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जैन कथा-साहित्य का गौरव-'वसुदेव हिण्डी' : २९
यद्यपि वसुदेवहिण्डी के भावनगर वाले संस्करण का संपादन बारह प्राचीन हस्तलेखों के आधार पर किया गया है, तथापि इस में अशुद्धियाँ एवं त्रुटियां रह गई हैं। साथ ही इसमें भाषा संबंधी प्रयोग भी विलक्षण हैं, जो अन्यत्र उपलब्ध नहीं होते। अतएव अर्थ के लगाने में कठिनाई होती है अर्थात् यह ग्रन्थ एक प्रकार से शुद्ध रूप में प्रस्तुत न किया जा सका, जिससे किसी टीका-टिप्पणी की सहायता के बिना विद्वान् पाठकों को इसके पठन-पाठन में कठिनाई का अनुभव होने से इसके पूर्ण रसास्वादन में बाधा उपस्थित होती रही।
उपर्युक्त कारणों से आकृष्ट होकर प्राकृत-भाषा एवं साहित्य के अनन्य विद्वान् डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव जी ने इस अभाव की पूर्ति-हेतु जैन-कथा-साहित्य के इस अतिविशिष्ट ग्रन्थ का अत्यधिक परिश्रम से पुनः संपादन किया और मूल पाठ के साथ हिन्दी अनुवाद देते हुए इसका एक अभिनव संस्करण प्रस्तुत किया। श्रीरंजन सूरिदेव के इस महत्कार्य से साहित्य जगत् निश्चय ही उपकृत हुआ है। इस साहित्योपकार हेतु उन्हें अनेकशः साधुवाद। उनके इस दुस्साध्य सारस्वत अनुष्ठान हेतु उनकी जितनी भी प्रशंसा की जाए, कम है। वसुदेवहिण्डी का यह नवीन संस्करण (मूल-सह हिन्दी अनुवाद) पं० राम प्रताप शास्त्री चेरिटेबुल ट्रस्ट, ब्यावर (राजस्थान) से प्रकाशित हुआ है। इसी कथा-ग्रन्थ पर श्री रंजन जी ने पीएच०डी० की उपाधि प्राप्त की है। यह शोधप्रबंध वसुदेवहिण्डी: भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा नाम से प्राकृत जैन शोध-संस्थान, वैशाली से प्रकाशित है। सन्दर्भ: १. वसुदेवहिण्डी के अनुसार वसुदेव अन्धक वृष्णि के सबसे छोटे पुत्र थे। २. धर्मदास गणि ने वसुदेवहिण्डी में सौ लम्भकों का अनुमान कर अपने
'मज्झिमखंड' से इसकी पूर्ति की है। यह वसुदेवहिण्डी का दूसरा खंड माना जाता है। इसमें ७१ लम्भक हैं, जिनके लेखक ने अन्त में न रखकर बीच में १८वें लम्भक से जोड़ा है। इसका श्लोक प्रमाण १७ हजार है। धर्मदासगणि
का समय अनिश्चित है। इस प्रकार वसुदेवहिण्डी के दो खंड माने जाते हैं। ३. यह जैन लेखकों का अद्भुत साहित्य एवं भावनात्मक कौशल है कि वे एक
जीवन्त प्रेम कथा को ऐसा मोड़ दे देते हैं और थोड़े से हेर-फेर से ही उसे एक वैराग्यपरक धर्म कथा में बदल देते हैं। उनके विचार में काम कथा के आवरण में धर्म कथा को सन्निहित कर प्रस्तुत करना चाहिए तभी वह प्रभावात्मक रहती है और जनमानस को धर्म-मार्ग पर लाने में सार्थक सिद्ध होती है।
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