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३४ : श्रमण, वर्ष ५५, अंक १०-१२ / अक्टूबर-दिसम्बर २००४
क्षेत्र में फैले हुए थे। वर्तमान बिहार गाँव में भी शानदार महाविहार प्रतिष्ठित था । इस महाविहार के दर्शनार्थ पधारे बौद्धों अथवा अन्य ने अपनी श्रद्धा के वशीभूत इन छोटीछोटी भेंटों को स्तूपों तथा अन्य वस्तुओं के रूप में प्रदान किया। वर्तमान में भी देखने
आया है कि बौद्ध तीर्थ यात्री पवित्र स्थानों के भ्रमण के दौरान विभिन्न बौद्ध प्रतीकों को तीर्थ स्थलों पर चढ़ाते हैं। कनिंघम के पश्चात् यहाँ उत्खनन कार्य नहीं हुआ है, फिर भी कनिंघम के अतिरिक्त ये विशिष्ट मृण्मुहरें ग्रामीणों को या तो बरसात में अथवा जुताई आदि करते समय यहाँ से प्राप्त हुई हैं।
निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि यदि यहाँ विधिवत एवं विस्तृत उत्खनन कार्य कराया जाये तो बौद्ध धर्म के साथ-साथ भारतीय कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में एक नया अध्याय जुड़ सकता है।
सन्दर्भ :
१. थामस वाटर्स, ऑन युआन- चुआङ्गस ट्रेवल्स इन इन्डिया, जिल्द - I, पृ० ३३. २. अलेक्जेंडर कनिंघम, आ०स०इं०रि०, जिल्द - IX, पृ० ३१.
३. वही।
४. वही, पृ० ३१, ३७.
५. वही, पृ० ३५.
६. आर०के० पॉल, 'टेराकोटा सीलिंग्स फ्राम पखना- बिहार', पंचाल, अंक- १,
पृ० १२०, १२३.
७. कनिंघम, पूर्वोक्त, जिल्द-IX, पृ० ३७.
८. आर०के० पॉल, पूर्वोक्त, पृ० १२१. ९. एम० एम० नागर, बौद्ध महातीर्थ, पृ० ६६.
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