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श्रमण, वर्ष ५५, अंक १०-१२
अक्टूबर-दिसम्बर २००४
कल्पप्रदीप में उल्लिखित वाराणसी के जैन एवं अन्य कतिपय तीर्थस्थल
शिव प्रसाद*
खरतरगच्छालंकार, सुलतान मुहम्मद तुगलक प्रतिबोधक, युगप्रधानाचार्य जिनप्रभसूरि द्वारा रचित कल्पप्रदीप अपरनाम विविधतीर्थकल्प' सम्पूर्ण जैन साहित्य में एक अद्वितीय ग्रन्थ है! यह वि०सं० १३८९/ई० सन् १३३३ में योगिनीपुरपत्तन (दिल्ली) में पूर्ण हुआ जैसा कि इसकी प्रशस्ति से स्पष्ट है -
नन्दाऽनेकप शक्ति शीतगुमिते श्रीविक्रमोर्वीपते वर्षे। भाद्रपदस्य मास्यवरजे सौम्ये दशम्यां तिथौ।। श्रीहम्मीरमहम्मदे प्रतपति क्ष्मामण्डलाखण्डले। ग्रन्थोऽयं परिपूर्णतामभजत श्रीयोगिनीपत्तने।। तीर्थानां तीर्थभक्तानां कीर्तनेन पवित्रितः। कल्पप्रदीपनामाऽयं ग्रन्थो विजयतां चिरम्।।
इस ग्रन्थ में चालीस जैन तीर्थों का कल्प रूप में अलग-अलग विवरण प्रस्तुत किया गया है। इन कल्पों में वाराणसी नगरीकल्प भी एक है जिसके अन्तर्गत ग्रन्थकार ने जैन परम्परा में इस नगरी के बारे में वर्णित कथानकों की चर्चा करते हुए इस नगरी की तत्कालीन स्थिति का भी वर्णन किया है। इसके अतिरिक्त 'चतुरशीतिमहातीर्थनामसंग्रहकल्प' के अन्तर्गत चन्द्रप्रभ से सम्बन्धित तीर्थस्थलों की सूची में वाराणसी का भी उल्लेख है :
वाराणस्यां विश्वेश्वरमध्ये श्रीचन्द्रप्रभः
'वाराणसी नगरी कल्प' के अन्तर्गत ग्रन्थकार ने यहां सुपार्श्वनाथ एवं पार्श्वनाथ के जन्मभूमि होने की बात कही है। यह बात जैन परम्परा के दोनों सम्प्रदायों के प्राचीन ग्रन्थों में मिलती है। पार्श्वनाथ का जन्मस्थान तो उन्होंने दण्डखात नामक तालाब के निकट बतलाया है किन्तु सुपार्श्वनाथ का जन्म वाराणसी के किस क्षेत्र में हुआ था अथवा उनका जन्मस्थान मंदिर वाराणसी में कहां था। यह बात उन्होंने पूरे वर्णन में कहीं भी नहीं बतलाया है। इस आधार पर यह निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि उनके (१४वीं शताब्दी) में वाराणसी नगरी में सुपार्श्वनाथ का कोई मंदिर विद्यमान नहीं था। * प्रवक्ता, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी
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