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श्रमण, वर्ष ५५, अंक १०-१२/अक्टूबर-दिसम्बर २००४
(भगवती २२.१), जासुअण, जासुमण जासुवण-जवाकुसुम (राजप्रश्नीय २७, प्रश्नव्याकरण १.४०.३), जूहिया-जूही (राजप्रश्नीय ३०), डब्भ-सफेद-दूब (प्रश्नव्याकरण १.४२.१), णीलुप्पल,नीलकमल (राजप्रश्नीय २६), तगर (राजप्रश्नीय ३०), तिमिर-मेहंदी (भगवती २१.१८), तुलसी (स्थानांग ८.११७.१, प्रश्नव्याकरण १.४४.३) देवदारु (प्रश्नव्याकरण १.४०.२), बउल-मौलसिरी (भगवती २२.२, प्रश्नव्याकरण १.३४.१), भद्दमुत्था, भद्दमोत्था, भद्दमोत्था-मोथा (भगवती २३.८), मगदंतिया-मालती (प्रश्नव्याकरण १३८.२), मोग्गर-मोगर (प्रश्नव्याकरण १.३८.२) सरिसव-सरसों (भगवती २१.१६, प्रश्नव्याकरण १.४५.२), सुभग-कमल (जीवाभिगम ३.२८६), सुभगा-सेवती गुलाब (प्रश्नव्याकरण १.४०.२), हरियाल-दूब (राजप्रश्नीय २८), हलिद्दा (जीवाभिगम ३.२८), हलिद्दी (उत्तराध्ययन ३४.८), हलिद्दा-हल्दी (राजप्रश्नीय २८). - उपर्युक्त पदार्थों का प्रसाधन-शरीर एवं मुख के उबटन, विलेपन, अंगराग आदि में प्रयोग होता है। पुष्पों को स्त्रियां अपने बालों में धारण करती हैं, माला का भी निर्माण होता है। इस प्रकार जैनागम साहित्य में प्रसाधन का प्रभूत वर्णन मिलता है। प्रसाधनकला पर स्वतंत्र शोधकार्य की आवश्यकता है। सन्दर्भ: १. शुक्रनीति, ४.३.१३५-१३७, १९८. २. उणादिसूत्र, २.२८. ३. ज्ञाताधर्मकथा, १.१.२४, ३३. ४. राजप्रश्नीय, २८. ५. प्रज्ञापना, १७.१२७. ६.जैनागम वनस्पति कोश, पृष्ठ ९१. ७. सूत्रकृतांग २.२.३१. ८. वही, २.२.६९, ७३. ९. स्थानांग, ८.१०. १०. ज्ञाताधर्मकथा, १.१.२४. ११. वही, १.१.२४.
• १२. वही, १.१.५३. १३-१४. वही, १.१.३४. १५. उपासकाध्ययन १.१.२९. १६.ज्ञाताधर्मकथासूत्र, १.८.३१. १७. वही, १.८.३१. १८. वही, १.८.४९.
१९. वही, १.८.५७, ५८, ६०, ६२. २०. वही, १.८.९२.
२१. वही, १.८.१६२ २२. समवायांगसूत्र, २१.११. २३. अंतकृद्दशांग, ६.१०. २४. वही, ६.२४.
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