Book Title: Sramana 2004 10
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 28
________________ आगमिक मान्यताओं में युगानुकूलन : २३ . र. पण्डित फूलचन्द्र शास्त्री जैसे विद्वानों ने हरिजनों को मनुष्य मानकर उनके मंदिर प्रवेश का समर्थन किया। उस समय उनका विरोध भी हुआ था, पर यह प्रश्न अब गौण सा बन गया है। ल. प्रत्येक धर्म-तंत्र में प्रायः तैंतीस प्रतिशत भौतिक जगत् का वर्णन रहता है। इस वर्णन की शब्दावली विशिष्ट होती है। इसके कारण ही, देश विदेश में इसका अध्ययन नहीं हो सका। इस सदी के अनेक विद्वानों ने शास्त्रीय शब्दावली में प्रस्तुत विचारों की आधुनिक मान्यताओं से अंशत: या पूर्णत: समकक्षता स्थापित कर जैन विवरणों की तथा उसके अनेक आचार-विचारों की वैज्ञानिकता प्रतिष्ठित कर उसके संवर्धन में योगदान किया है। इससे पश्चिमी जगत् जैन धारणाओं के मंथन की ओर आकृष्ट हुआ है। इस तरह भाव (समय-आधारित पर्यायें) की दृष्टि से भी भौतिक एवं आध्यात्मिक मान्यताओं में बदलाहट या परिवर्तन आया है। इन परिवर्तनों के विषय में सभी विद्वान् अवगत हैं। आज भी यह परम्परा अविरत चल रही है। इसके बावजूद भी, जो विवेकी जन विज्ञान को उसकी निरन्तर परिवर्तनशीलता के कारण धर्म की तुलना में सम्मान नहीं देते और धार्मिक सिद्धांतों को युगानुकूल परिवर्तित न होने का मत व्यक्त करते हैं, उन्हें अपने मतों की पुनः समीक्षा करनी चाहिये। आगमिक या आगम-कल्पिक मान्यताओं के इन परिवर्तनों तथा समयानुकूल नई स्थापनाओं के आधार पर उनकी प्रामाणिकता विशिष्ट ऐतिहासिक काल के आधार पर मानी जानी चाहिये, त्रैकालिक आधार पर नहीं। यह सत्य है कि आगमों के अनेक विवरण विशेषत: अमूर्त जगत् के और अनेक भौतिक जगत् के भी आज भी अनुकरणीय होंगे, शायद त्रैकालिक सत्य भी हों। अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह आदि ऐसे ही सिद्धांत हैं। हां, भौतिक विवरणों पर परन्वतुष्टय से विचार अपेक्षित है। विचारकों ने यह माना है कि जो सिद्धांत या मान्यतायें युगानुरूप नहीं होती, वे जीवन्त नहीं बनी रह पातीं। फलतः प्राचीन शास्त्रीय मान्यताओं के युगानुकूलन की प्रक्रिया अविरत चलनी चाहिये। यही वैज्ञानिकता की कसौटी है, जीवंतता की निकष है और धर्म के सुख-संवर्धक रूप की सक्रियत: प्रेरक है। यह प्रक्रिया ही पूर्वोक्त समस्याओं के निराकरण में हमारी सहायक होगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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