Book Title: Sramana 2004 10
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 15
________________ १० : श्रमण, वर्ष ५५, अंक १०-१२/अक्टूबर-दिसम्बर २००४ ज्ञाताधर्मकथा में अनेक प्रकार के माला-प्रभेदों का वर्णन मिलता है। सुइमाला०, सकोरेंटमल्लदा मेंण११, ववगयमाला१२, चंपगमाला१३, पुप्फगंधमल्लालंकारहारं१४। उपासकाध्ययन में मालतीपुष्प के माला का वर्णन है। गाथापति आनन्द मालतीपुष्प की माला को छोड़कर अन्य मालाओं की परित्याग कर देता है।१५ पुष्पमाला के अतिरिक्त रत्नों की माला का भी वर्णन मिलता है। श्रीदामगण्ड - एकस्थल पर वर्णन है कि साकेत नगरकीरानी नाग-पूजा महोत्सव' का आयोजन करती है। उसमें में विभिन्न प्रकार के सुगंधित पुष्पों द्वारा मण्डप बनाया गया। इसमण्डप में दिदिगन्त तक अपनी सुरभिको फैलानेवाला एक 'श्रीदामगण्ड' लटकाया गया। यह श्रीदामगण्ड 'शोभा सम्पन्न मालाओं के समूह का वाचक है। कुंभ राजा की पत्नी पद्मावती एक रात मंगलकारक चौदह महास्वप्न देखती है, जिसमें पुष्पमाला भी है। प्रभावती के गर्भ-धारण के तीन मास पश्चात् दोहद उत्पन्न होता है - जिसमें वह विभिन्न श्रेष्ठ एवं सुगंधित पुष्पों से बने का श्रीदामगण्ड की प्राप्ति की इच्छा करती है। इस प्रसंग में श्रीदामगण्ड का अत्यन्त सुन्दर वर्णन है। पाटला, मालती, अशोक, पुंनाग, मरुआ, दमणक एवं निर्दोष शतपत्रिका के पुष्पों के साथ उत्तमकोरंट के पत्रों को गूंथ कर बनाया जाता है, जो स्पर्श में परमसुखदायक, देखने में सुन्दर तथा अत्यन्त सुगंधि से परिपूर्ण होता है।१६ पद्मावती की इच्छापूर्ति के लिए वाणमंतर देव सुमंधित 'श्रीदामगण्ड' पद्मावती को प्रस्तुत करते हैं। पद्मावती उन्हें सूंधती हुई अपनी इच्छा पूर्ण करती है।१७ पद्मावती के नागयज्ञ में अनेक मालाकार मिलकर 'श्रीदामगण्ड' का निर्माण करते हैं।१८ ज्ञाताधर्मकथा में अन्यत्र भी विभिन्न स्थलों पर इसका उल्लेख है - महं सिरिदामगंड।१९ कुणाला जनपद के श्रावस्ती नगरी के राजा की पुत्री सुबाहु के चातुर्मासिक स्नान उत्सव के अवसर पर उसे 'श्रीदामगण्ड' विशिष्ट गंधयुक्तसपत्र पुष्पहार दिया जाता है।२० राजवरकन्या द्रौपदी-पाटला, मल्लिका और चम्पक के पुष्पों से बनी परमसुखपेशकारक और दर्शनीय 'श्रीदामगण्ड' को ग्रहण करती है।२१। आगम साहित्य में अनेक स्थलों पर इसका उल्लेख है - सिरिदामगण्डं मल्ल।२२ आगमटीकाकार ने माला को बाह्य शोभाकारक पदार्थ माना है। निशीथसूत्र (७.१) में १६ प्रकार के मालाओं का निर्देश है - १. तणमालियं (तृण की माला), वीरण (खश) आदि की माला तृण माला है। आज भी इसका प्रचार है। २. मुंजमालियं - 'मुंज' एक प्रकार का पवित्र घास है। पूजादि में इसका प्रभूत प्रयोग होता है। मुंज से बनी माला 'मुंजमाला' है। उपनयन संस्कार के समय अथवा दीक्षा धारण करते समय इसका प्रयोग किया जाता है। ब्रह्मचारियों को यह बहुत प्रिय है। यह तत्पश्चरण का प्रतीक है। इसे मौञ्ज भी कहते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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