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श्रमण, वर्ष ५५, अंक १०-१२
अक्टूबर-दिसम्बर २००४
अर्द्धमागधी जैन आगम साहित्य में माला निर्माण-कला
डॉ० हरिशंकर पाण्डेय
कामसूत्र में निर्दिष्ट ६४ कलाओं में १४वें स्थान पर माल्यग्रंथ कला का उल्लेख है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्ति में महिलाओं के लिए निर्दिष्ट चौंसठ कलाओं में पुष्पग्रंथन का निर्देश है।
माला-निर्माण की कला अत्यन्त प्राचीन है। वैदिक काल से लेकर आज तक मालानिर्माण की कला अविच्छिन्न है, क्योंकि इसका संबंध मानव जीवन से है। नित्यप्रति पूजा-पाठ, श्रृंगारादि में प्रतिदिन माला की आवश्यकता होती है। सुश्रुत एवं चरकसंहिता में 'मालाधारण' करना मानव के लिए अनिवार्य माना गया है। शुक्रनीति में स्पष्ट उल्लेख है कि वस्त्रों का सम्यक् परिधान, आभूषणधारण, ताम्बूल के साथ माला धारण करना कला के अंतर्गत आता है। अग्निपुराण में शरीर को सुन्दर, सुगंधित, प्रसन्न एवं स्वस्थ बनाने के लिए अन्य कृत्यों के साथ 'मालाधारण' भी अनिवार्य माना गया है। स्त्रियों के षोडशशृंगार में 'मालाधारण' महत्त्वपूर्ण श्रृंगार है। माला का स्वरूप - व्युत्पत्ति एवं अर्थ - 'माङ्माने' धातु से 'ऋजेन्द्राग्रवज्रे' से रन् प्रत्यय, र < लत्व और टाप् (आ) करने पर स्त्रीलिंग में माला शब्द बनता है। 'माति मानहेतर्भवति' अर्थात् जो सम्मान का कारण होता है या जिसे सम्मान होता है, उसे माला कहते हैं। मां शोभां लातीति अर्थात् मा अर्थात् लक्ष्मी, शोभा, समृद्धि को प्रदान करता है, वह माला है। श्रेणी, राजि, तती, वीची, आली, आवलि, पंक्ति, धारणी, माल्य,स्रक, मालिका, मालाका, मालका आदि माला के पर्याय शब्द हैं।
आगम साहित्य में अनेक स्थलों पर माला का वर्णन मिलता है। पुष्पामाला, रत्नों की माला आदि का उल्लेख है। कोरंट पुष्प की माला का अनेक स्थलों पर उल्लेख है - सकोरेंटमल्लदामेण, कोरंटकदाम, कोरेंटमल्लदाम । कटसरैया के पीले फूल को कोरेंट या कोरेन्टक कहते हैं। लाल रंग की कटसरैया को कुरबक कहते हैं।
सूत्रकृतांग में मणिसुवर्णों की माला एवं सामान्य माला का उल्लेख है। सूत्र धारण करने का भी उल्लेख है - सोणिसुत्तगमल्लदाम कलावे। वहीं पर आविद्धमणिसुवण्णे कप्पियमाला मउली का भी निर्देश है - विचित्तमालामउलिा
स्थानांगसूत्रमेंमालाकेविभिन्नरूपोंकाउल्लेखमिलताहै-गंधमल्ल, वणमालधरे। * अध्यक्ष, प्राकृत एवं जैनागम विभाग, जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं
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