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सोलहकारण घम । अब २५ मलदोषोंकों कहते हैं - मि च मदाष्टः च षडेवाऽऽयतनानि च । शंकादयोऽष्टसम्भक्त्वे दोषाः म्यु: पंचविशतिः ।।२९||
( धर्मसंग्रह श्रावकाचार अ० ४) अर्थ तीन : देव, लोक और गुरु । मुढ़ता, अष्ट ( शान, कुल, जाति, बल, सम्पत्ति. तपश्चरण रूप ऐश्वर्य ) मद, छह (कुदेव. कु.गुम्, 'कुनाई और जुडेज सेगक, तुम रोवः और. कुधर्म रोवक अनायतन और आठ | शंका, कांक्षा, ग्लानि, मूढदृष्टि, अनुपगृहन, अस्थितीकरण अवात्सल्य और अप्रभावना । दोष, इस प्रकार सब मिलकर पञ्चीस मलदोष हुवे, इनका त्याग करना चाहिये । इनका कुछ सक्षिप्त वर्णन नीचे किया जाता है
देव मदुता। भय, आशा, स्नेह या लोभादिके वश हो करके रागी दोषी देवोंको तथा जिनदेवको भी पूजना व उनकी मानता मानना सो देवमूढ़ता है। कारण, किसी भी प्रकारको लौकिक सिद्धिकी इच्छा करके जो देवपूजादि करना सो देव मूढ़ता है । क्योंकि कार्यकी सफलता असफलता जो होगी वह अपने ही किये हुवे पूर्व पुण्य और पापक के अनुसार यथायोग्य होगी। इसमें कोई देव देवो कुछ भी कर नहीं सकते हैं । क्योंकि पुण्य कर्म तो मंद कषायोंसे किये हुवे सपश्चरण दया दान व्रत शील संयम ध्यान ज्ञानादिसे होता है। सो इनमें ने प्रवृत्ति कर देवोंकी मानता मानना भूल है, मूढ़ता है, अज्ञान है। यदि कहो कि तब तो जिनदेवकी भी उपासना नहीं करना ठहरा सो ठीक है। लौकिक अभिप्रायोंकी सिद्धिके