Book Title: Solahkaran Dharma Dipak
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Shailesh Dahyabhai Kapadia

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Page 85
________________ सोनकारण पम । | ८३ यत्र तत्र धर्मोपदेश करते हुए विचरते थे, परन्तु कालदोषसे अब दिगम्बर साधुओं का सम्प्रदाय दृष्टिगोचर नहीं होता है, इसलिये धर्मकी परम्परा पूर्वाचार्य के द्वारा रचित ग्रन्थोंके आधारसे ही चलती है । श्री महावीरस्वामीके मोक्ष जानेके बाद गौतमस्वामी, सुधर्मस्वामी और जम्बूस्वामी ये तीन केवली और विष्णुनंदि, मित्र, अपराजित, गोवर्बन और भद्रबाहु ये पांच श्रुतकेदली हुए। उसके बाद दिनोंदिन ज्ञानका विच्छेद होने लगा, तब जो दिगम्बर ऋषि उस समय इस क्षेत्रको अपने चरण-रजसे पवित्र करते थे, उन्होंने विचारा कि कालदोषसे दिनों दिन ज्ञानको न्यूनता होती जाती है इसलिये यदि कुछ समय और भी गया, तो सत्य धर्मका सर्वथा लोप हो जायगा और इस परम पवित्र सर्वके (कल्याणकारी जैन धर्मको लोग अपनी अपनी कषाय बुद्धि अनुसार दूषित करके प्राणियोंको उन्मार्गमें फंसायेंगे इत्यादि, ऐसा समझकर उन परमदयालु महामुनियोंने ग्रन्थोंकी लेखन रूप क्रिया पश्चात् उन्हींका आधार लेकर पीछे बहुत से ग्रन्थोंकी रचना की । इसलिये जो महानुभाव इन पवित्र ग्रन्योंको मन वचन काय से भक्ति और श्रद्धापूर्वक अर्थ उतारण कर पढ़ते हैं, दूसरोंको पढ़ाते हैं, दूसरोंसे सुनते हैं, और दूसरोंको सुनाते हैं, वे ही सच्चे कल्याणके मार्गको प्राप्त होते हैं वे 'सम्यग्दर्शनको प्राप्त होकर सम्यक्ज्ञानको प्राप्त होते हैं, फिर सम्यक्चारित्रको धारण करके अविनाशी पद (मोक्ष) को प्राप्त होते हैं । १ - शास्त्रोत्पत्तिका विशेष वर्णन श्रसावतार कथामें देखो २- देखो सर्वधर्म चार्ट नं० २

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