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संहिकारण धर्म ।
आदि एकभुक्त करे, अञ्जन, मञ्जन, अलंकार विशेष धारण न करे शीलव्रत ( ब्रह्मचर्य) रक्खे, नित्य षोडषकारण भावना भावे और यंत्र बनाकर पूजाभिषेक करे, त्रिकाल सामायिक करे और ॐ ह्रीं दर्शन विशुद्धि, विनयसम्पन्नता, शीलव्रतेष्वनतिचार, अभोक्षणज्ञानोपयोग, संवेग, शक्तितस्त्याग, शक्तितस्तप, साधुसमाधि, वैयावृत्यकरण, अर्हतभक्ति आचार्यभक्ति, उपाध्यायभक्ति प्रवचनभक्ति, आवश्यकापरिहाणि, मार्गप्रभावना, प्रबचनवात्सल्यादि षोडशकारणेभ्यो नमः ) इस महामंत्रका दिनमें तीन वार १०८ एकसो आठ जाप करें। इस प्रकार इस व्रतको उत्कृष्ट सोलह वर्ष, मध्यम ५ अथवा दो वर्ष और जघन्य १ वर्ष करके यथाशक्ति उद्यापन करें अर्थात् सोलह उपकरण मंदिर में भेट दे और शास्त्रज्ञान करें, विद्याज्ञान करें, शास्त्रभंडार खोले, सरस्वती मंदिर बनावें, उपदेश करावें इत्यादि यदि सव्य खर्च करनेकी शक्ति न हो तो द्विगुणित व्रत करें ।
इस प्रकार ऋषिराजके मुखसे व्रतकी विधि सुनकर कालभैरबो नामको उस ब्राह्मण कन्याने षोडशकारणत्रत उकृष्टरीतिसे पालन किया, तथा भावना भाई और उद्यापन किया । पीछे समाधिमरण कर बीलिंग छेदकर सोलहवें | अच्युत ) स्वर्गमें देव हुई वहांसे बाईस सागर आयुपूर्ण कर वह देव, जम्बूदीपके विदेह क्षेत्रसम्बंधी अमरावती देशके गंधर्व नगरमें राजा श्रीमंदिरकी रानी महादेवी सीमंधर नामक तीर्थंकर पुत्र हुआ । सो योग्य अवस्थाको प्राप्त होकर राज्योचित सुख भोग जिनेश्वर दोक्षा ली और वोर तपश्चरण कर केवल ज्ञान प्राप्त करके बहुत जीवोंको धर्मपदेश दिया तथा आमुके अन्तमें समस्त अघाति कर्मो का भी नाश कर निर्वाणपद प्राप्त किया ।