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सोलहकारण धर्म । तिथंच गतिमें भी एफेन्द्रिय दोइन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चौइंनिय और असंनी पंचेन्द्रिय जीवोंको सो मनके अमावसे सम्यग्दर्शन ही नहीं हो सकता है और विना सम्यग्दर्शनके सम्यक चारित्र नहीं होता तथा, विना चारित्रके मोक्ष नहो होता है। रहे सनी पंचेन्द्रिय जीष, सो इनको अप्रत्याख्यानामाम कषाय ने शम होने से एमादेशश मत हो सकता है, परंतु पूर्ण नहीं तब मनुष्य गति ही एक ऐसी गति टहरी, कि जिसमें यह जीव सम्यक्त्व सहित पूर्ण चारित्रको धारण करके मोक्ष सुखों को प्राप्त कर सकता है। मनुष्योंका निवास मध्य सोक हीमें है। इसलिये मनुष्य क्षेत्रका कुल संक्षित परिचय देकर इस कथाका प्रारम्भ करेंगे ।
लोकाकाशके मध्य में १ राजु चौड़ा और ७ राजू लम्बा मध्य लोक हैं, जिसमें त्रस जीवोंका निवास १ राजू लम्बे और १ राजू घोड़े क्षेत्र ही में है (मध्यलोकका बाकारECcco) इस १ राजू मध्य लोकके क्षेत्र में जम्बूद्वीप और लवणसमुद्र आदि अनेक द्वीपसमुद्र चूडीके आकार एफ दूसरेको घेरे हुए हैं ।
इन असंख्यात द्वीप समुद्रोंके मध्य में जम्बूद्वीप घालीके आकार (गोल है। इसके आसपास लवणसमुद्र, फिर घातकी खंड द्वीप, फिर कालोदधि समुद्र, फिर पुष्कर होप है । यह पुस्कर द्वीप बीचोबीच एक पर्वतसे जिसे मानुषोत्तर पर्वत कहते है क्योंकि मनुष्य उसके पार नहीं जा सकता है, दो भागोमें बटा हुआ है। इस प्रकार जम्बू, धातकी और पुष्कर भाषा। ढाईद्वीप) और लवण तथा कालोदधि ये दो समुद्र मिलकर मनुष्यलोक कहलाता है.
और इतने ही क्षेत्रसे रमत्रयको धारण करके मोक्ष प्रा कर सकता है।