Book Title: Solahkaran Dharma Dipak
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Shailesh Dahyabhai Kapadia

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Page 110
________________ सोलहकारून फिर नोचेके भागमें पृथ्वीपर मनुष्य तिथंच पशु और व्यंतर जातिके देवोंका निवास है। माय लोकसे नोचे बोलोक (पानाल लोक ) है । इस पाताल लोक के ऊपरी कुछ भागमै व्यता और भवनयासो देव रहते हैं, और शेष भागमें नारको जीवोंका निवास है। अबलोकवासी देव, इन्द्रादि तथा मध्य व पातालबासी चारों प्रकारके देव इन्द्रादि तो अपने पूर्व संचित पुण्यके उदय जनित फलको प्राप्त हुए इन्द्रिय विषयोंमें निमग्न रहते है अथवा अपने से बड़े भूनिवारी इन्द्र देवादिको विभूति व ऐश्वर्यको देखकर सहनकर न सकने के कारण आध्यानमें निमग्न रहते हैं और इस प्रकार वे अपनी आयु पूर्ण कर वहांसे चलकस मनुष्य तियंचादि किसो गतिमें स्वकर्मानुसार उत्पन्न होते हैं । इसप्रकार पातालवासी नारको जीव भी निरंतर पापके उदयसे परस्पर, मारने ताडन बध बन्धनादि नाना प्रकारके दुखोंको भोगते हुए आर्तरोद ध्यानसे आयु पूर्ण करके मरते हैं और वे भो स्वकर्मानुसार मनुष्य व तिथंच गतिको प्राप्त करते हैं। तात्पर्य ये दोनों देव तथा नरक गतियां ऐसी हैं कि इन से विना आयु पूर्ण हुए तो निकल नहीं सकते हैं, और न वहाँसे सधि मोलगतिको प्राप्त कर सकते हैं। क्योंकि इन दोनों गतिके जीवांका शरीर वैक्रियक है, जो कि अतिशय पुण्य व पापोंके कारण उनको उसका फल सुख किंवा दुःख भोगनेके लिये हो प्राप्त हुआ है। इसलिये इनसे इस पर्यायमें चारित्र धारण नहीं हो सकता है, और चारित्र विना मोक्ष नहीं होता हैं इसलिये इन गतिक जीवोंको वहांसे निकलकर मनुष्म वा तिर्यंच गतिमें ही आना पड़ता है।

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