Book Title: Solahkaran Dharma Dipak
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Shailesh Dahyabhai Kapadia

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Page 108
________________ -- १०६] सोलहकारण धर्म :1 (१५) आवश्यकपरिहाणि । भाव धरै समता सब बीवसु, स्तोत्र पढ़े सुखमें मन हारी। काय उत्सर्ग करे मन प्रीतसु, वंदन देव तणो भबहारी ॥ ध्यान धरी मद दूर करी, दाउ वेर करे पडि कम्मण भारी । शान कई मुनी सो धनवंतजु, दर्शन ज्ञान चारित्र उधारी ! १४॥ (१५) मार्गप्रभावना ।। जिनपूजा रचे परमारथसु जिन,आगल नृत्य महोत्सव ठाणे । गाचत गीत बजावत ढोल, मृदंगके नाद सुथांग वखाणे ॥ संघ प्रतिष्ठा रचे जल जातर, सद्गुरुकृ साहमोकर आणे 1 ज्ञान कह जिन मार्गप्रभावना, भाग्य विशेष सुजानहि आणे ।। १५ १६] प्रवचनवत्सलव । गौरव भाव धरी मनसु मुनि, गवको जिनात्सल कीजे । शीलके धारक भव्य के तारक, धानासु निरंतर स्नाधरि जे|| धेनु यथा निज बालकक, अपने जीव छूट न और पता जे । भान कहे भवी लोक सुनी,जिन वत्सल भाव घरे अंग छीजे॥१६ (१७) आशीर्वाद । सुन्दर षोडस कारण भावन, निर्मल चित्त सुधारके धारे। कर्म अनेक हणे अति दुर्धर, जन्म जरा भय मृत्यु निवारे ।। दुःख दरिद्र विपत्त हरे, भवसागरको पर पार उतारे । बान कहे इह षोडश कारण, कम निवारण सिद्धिस ठारे ॥१७॥

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