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सानहकारण बम !
जाता है और इन कालोंमें कोई मो जीव मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता है । विदेह क्षेत्रमें ऐसी कालचक्रकी फिरन नही होती हैं । वहां सदैव हो तीर्थंकर विद्यमान रहते हैं और मोक्षमार्गका उपदेश व साधन रहने से जीव मोक्ष प्राप्त करते रहते हैं। जिन क्षेत्रोमें रहकर जीव आत्मधर्मको प्राप्त होकर मोक्ष प्राम कर सकता हैं अयवा जिनमें मनुष्प असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, शिल व विद्यादि द्वारा आजोविका करके जीवन निर्वाह करते हैं वे क्षेत्र कर्मभूमि कहलाते हैं।
अम्बुद्वीप (जोकि सब द्वीपों में हैं ) में बीचोंबीच सुदर्शन मेह नामका स्तंभाकर एक लाख योजन ऊंचा पर्वत है । इस पर्वत पर सोलह अकृषिक जिन मंदिर हैं ! यह व्हो पर्वत है कि जियार भगवानका जन्माभिक इन्द्रादि देवों द्वारा किया जाता है। इसके सिवाय ६ पर्वत और भो दण्डाकार ( भीतके समान ) इस दोष में हैं। जिनके कारण यह द्वीप सात द्वीपोंमें बट गया हैं। ये पर्वत सुदर्शनमेरुके उत्तर र दक्षिण दिशामें आड़े पूर्वसे पश्चिम तक समुद्र में मिले हुये हैं। दक्षिणको ओरसे सबसे अंतके क्षेत्रको भरतक्षेत्र कहते हैं। इस भरत क्षेत्रमें भी बोच में विजयाद पर्वत पड़ जानेसे भरतक्षेत्र दो भागोंमें बट जाता है
और उत्तरकी ओर जो हिमवत पर्वत पर पद्महद है, उससे गंगा और सिधु दो महानदियां निकलकर विजयाई पर्वतको भेदती हुई पूर्व और पश्चिमसे बहती हुई दक्षिण समुद्र में मिलती है । इससे भरतक्षेत्रके छ- खंड हो जाते है, इन छ: खंडोंमेंसे सबसे दक्षिगका बोचत्राला खंड आर्य खंड कहलाता है। और शेष ५ म्लेच्छ खंड कहलाते है । इसी आर्य खंडमें तीर्थंकरादि .महापुरुष उत्पन्न होते हैं । यहा आर्य खंड कहलाता है।