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सोलकाप
[...] सोलहारण बहिमा दोहा-धोडस कारण गुण कर, हरे चतुर्गति पास । पाप पुण्य सब नापाके, ज्ञान भानु परकास ।। १॥
चौपाई । वर्शन विशुद्धि घरे जो कोई । ताको आवागमन न होई ॥ विनय महा पारे जो प्राणी । शिव वनिताको सखिय वखाणी ॥२॥ सील सदा दृढ जो नर पाले । सो औरनको आपदा टालें ।। शान अभ्यास करे मन माहीं । ताके मोह महातम नाहीं ॥३॥ गो सम्वेग भाग विस्तार । स्वर्ग मुक्तिपद आप निहारे । दान देय मन हष विशेखै । यह भव यश परभव सुख देखे ॥४॥ जो तर तपै खपं अभिलाषा । चूरे कर्म शिखर गुरु भाषा ॥ साधु समाधि सदा मन ला । तिहूँ जग भोग भोग शिव जावै ।।५।। निधि दिन वैयावृत्य करैया । सो निश्चय भव नोर तरया ।। जो अहन्त भक्ति मन आन । सो नर विषय कवाय न जाने ।। ६ ।। को आचारग भक्ति करै है | सो निर्मल आचार धरै हैं । बहुश्रुतिवंत भक्ति जो करई । सो नर सम्पूरण मृत घाई ।। ७॥ प्रवचन भक्ति कर जो ज्ञाता । लहे ज्ञान परमानंद दाता॥ षट् आवश्यक काल जो साधे । सो ही नर रत्नत्रय आराधे ।।८।। धर्म प्रभाव कर जो ज्ञानो । तिन शिवमारग रीति पिधानी ॥ सत्सस्मोग सदा जो ध्यावे । सो तीर्थकर पदवी पार्व ।। ९ ।।
-पही सोमह भावना, सहित पर व्रत जोस । देव इन्द्र नर पर, बानत शिवपन होय ॥ १ ॥