Book Title: Solahkaran Dharma Dipak
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Shailesh Dahyabhai Kapadia

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Page 105
________________ सोलहकारण बने। (२) विनयसम्पन्नत्व । देव तथा गुरुराय तथा नप, संयम शीलवतादिक धारो । पापके हारक काम के सारक, शन्य निवारक कर्म निवारी ॥ धर्मके धीर कषायके मेदक, पंच प्रकार संसारके तारी । ज्ञान कहे विनयो सुखकारका मान धरि मत हानिकी (३) शील । शील मदा सुख कारक है, अतिवार विवर्जित निर्मल कोजे । दानव देव करे तस सेव, विषाद न भूत पिशाच पतिजे ।। शील बडो जगमें हथियार, जु शीलकु उपमा काहेक दीजे । ज्ञान कई नहि शील बराबर,तात सदा दृढ़ शील धरीजे |३॥ (४) अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग। ज्ञान सदा जिनराजको भाषित, आलस छोड़ी पढे जु पढावे । द्वादश दोउ अनकह भेदसु, नाम मति श्रुत पंचम पावे ॥ चारह वेद निरंतर भाषित, ज्ञान अभीक्षण शुद्ध कहावे । शान कहे श्रुत भेद अनेकज, लोक अलोक प्रगट दिखावे ।।४।। (५) संवेग । मातन नातन पुत्र कलत्रन, संपति सजन ए सब खोटो। मंदिर सुन्दर कायसखा सत्र, कोबह कोहम अंतर माटो ।। भाव कुभात्र धरी मन भेदत, नार्ह संवेग पदारथ छोटो । शान कहे शिव साधनको जैसे,शाहको काम करेजो घणोटो॥५॥

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