________________
सोलहकारण पर्म । पूर्वक प्रेमसे कुछ प्रतादि ग्रहण करावे । इस प्रकार रत्नश्मके पारी पुरुषोंका सत्कार करके हर्षित होघे और अपनेको धन्य समझे । और जो धर्मसे पराङ्गमुख ( अजैन) हो तो उसे भी चया और प्रेमपूर्वक वर्ताव करके भोजन वस्त्रादि अनेक प्रकारमे सरकार कर उपदेश करके सम्यक रलत्रय मार्ग ग्रहण करावे । तथा पशु, पक्षी आदि दीन निर्बल प्राणी व मनुष्यादि इसी दरिदियोंका यथाशक्ति प्रेमसे और दयाभावसे उपकार करे, सनकी जीविकादिका उपकार कर देवे, इत्यादि अनेक प्रकारमे से बने वैसे
" उदारचरितनां तु वसुधैव कुटुम्बकम् " इस नीतिका पालन करते हुए संसारके प्राणीमात्रके दुःखोको अपना ही दुःख समझकर उनके दुःखमोचनका उपाय करें । कहा है कि
मर गये इन्सान वे जो, मर गये अपने लिय । पर वे अमर इन्सां हुए, जो मर गये जगके लिये। तात्पर्य यों तो सभी मरते हैं, जीते हैं, जन्मते हैं परन्तु पतृहरिजीके कथनानुसार कि
परिषतनि सेमारे मतः कोचा न जायते । स जातो येन जातेन, याति वंश समुभतिम्।।
भावार्य-परिवर्तनरूप संसारमें कौन नहीं जन्मता व मरता है परन्तु मरना व जन्मना उसीका सार्थक है, कि जिसने अपनी जाति तथा वंशकी उन्नति में जीवन लगाया है यथार्थ में बो परके दुःखको दुर करके अपने आपको सुम्सी मानते हैं वे 'पुरुष धन्य हैं । इस प्रकारके छलकपट मानावि कषाय रहित