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सोलहकारण धर्म । होगी, सर्वच शांति धर्मका प्रकाश फैलेगा, अहिंसाका डंका बजेगा और निविघ्न' धर्मपालन हो सकेगा इसलिये शुद्ध स्वदेशी खादी, खांड, औषधियोंका प्रचार करना और विदेशी वस्तुऔका प्रचार बन्द करना ।
जिन मंदिशोंमेंसे विदेशी वन व अन्य रेशम आदिके अपवित्र पदार्थ निकाल कर शुख स्वदेशी खादी आदि ही काम में लेना। इत्यादि । यही सप्त क्षेत्र प्रभावनाके हैं तात्पर्य यह है कि जिस तरह बने उस तरहसे जैन धर्मका प्रचार करना यही प्रभावना है । इसप्रकार प्रभावनांगका स्वरूप कहा ।
जैसा कि कहा हैबहु दान करें परमायको, शिवाय महोत्सव काणे। भक्ति करें बहु गाय बजाय, सुनृत्य करें जिय शास्त्र वखाणं ॥ संघ बुलाप सुतीर्थ करें, उपदेश कराय मिथ्यातको हाने । ज्ञान कहे जिन मार्ग प्रभावन,विरले हि पुण्य पुरुष मन आने ॥
इति मार्गप्रभावना भावना ॥ १५ ॥