Book Title: Solahkaran Dharma Dipak
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Shailesh Dahyabhai Kapadia

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Page 95
________________ सोलहकारण धर्म । जिनके सेवक देव और देवेन्द्र विद्यापर और बड़े. राधा महाराजा थे, सो भी तीन लोककी विभूतिको तृपयन् निःसार समझकर छोड गये, उन्हें मृत्यु और जामसे मय हो गया, वे भी कर्मके यंघनसे डर गये, इसलिये जिन दीक्षा ग्रहण कर आप तो संसारसे परे हो ही गये और हम लोगोंको भी कल्याणका मार्ग बता गये हैं। सो जब कि मौसने उन्हें भी नहीं छोड़ा, कर्म उनके पीछे भी लगा रहा कि जिसके लिये उन्हें यह लोकको विभूति विनाशीक जानकर छोड़ना पड़ो, तो भला हम दीन, शक्तिक्षीण. पुण्यहीन बनोंकी तो गिनती ही क्या है ? अवश्य ही एक दिन हमको काल कवलित कर जाधेगा. और यह समस्त परिग्रह पुत्र कलत्र गृह घन पान्यादि यही पड़ा रह जायेगा. केवल स्वकृत पाप व पुण्यकर्म ही साथ जागे । यह शरीर भी गल सड़कर ढेर हो जावेगा, इसलिये हमको भी जो मार्ग प्रभ दिखा गये हैं, उसी सत् पयमें लगपर अपना कल्याण करना चाहिये इत्यादि २ । सो ऐसे अवसरोंपर भी संयमी, व्रती, उदासीन, त्यागी विद्वानोका समागम अवश्य मिलाना चाहिये । तथा उनसे व्याख्यान और तत्वचर्चा खूप होना चाहिये । उत्तमोत्तम तत्वोपदेशी भजनपद गाना, भक्तिवश जिन भगवानके सामने नृत्य भजन संगीत स्तवनादि करना, पूजा करना, बड़े बड़े प्रेसठ शलाकादि पुरुषोंके जीवन-चरित्र लोगोंको सुनाना, इत्यादि अनेक प्रकारसे प्रभावना करना चाहिये । यथार्थमें मंदिरादि बिम्बप्रतिष्ठाओंका यही अभिप्राय है, न कि ज्यों त्यों करके मंदिरोंकी संख्या बढ़ाते चले जाना ।

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