________________
९० ] . सोलहकारण धर्म । पदार्थका स्वरूप समझा देनेसे ही वे असत पक्षको छोडकर सन्मार्ग पर आ जाते हैं । और एक ही विद्वानके सन्मार्ग पर आनेसे उसके अनुयायी भी प्रायः सन्मार्गमें लग जाते हैं । क्योंकि वह विद्वान अपने अनुयायियों को किस प्रकार समझाना चाहिये, यह भलीभांति जानता है। इसलिए उसके समझने पर वह अपने अनुयायियोंको भी अनेक युक्तियों द्वारा समझा कर सन्मागमें लगा सकता है । ऐसा ही पूर्वकालमें हमारे ऋषियोंने किया है।
जैन अग्नवाल व हुमड़ जातियोंके इतिहाससे विदित होता है कि लोहाचार्य, जिनसेनाचार्य आदि महामुनियोंने अपने उपदेशसे लाखों मनुष्योंको हिसादि पापोंसे हुड़ाकर जैनी बनाया था । इसलिये सबसे उत्तम और प्रथम उपाय तो प्रभावनाका यही है कि अच्छे २ विद्वान द्रव्य क्षेत्र काल और भावके ज्ञाता, धर्मके मर्मज्ञ, सदाचारी, अनुभवी, उदार, सन्तोषी और मंदकषायी इत्यादि सद्गुणी उपदेशकों द्वारा शहरोंशहर, ग्रामोंग्राम और देशोदेशमें हरसमय दौरा कराकर उपदेश करावें | और इन उपदेशकोंको निराकुल करके उपदेश करने भेजे ताकि वे किसीसे कुछ भी याचना न करे। क्योंकि " लोम पापका बाप बखाना" जहां किसीसे इन उपदेशकोंने कुछ भी याचना की, कि फिर उपदेशका महत्व उनपर नहीं पड सकता है, वे उपदेशकोंको तुच्छ ( भिक्षुककी) दृष्टि से देखने लगते हैं, और डरने लगते हैं, कि कहीं ये कुछ मांग तो न बैठेंगे इत्यादि ।
क्योंकि यथार्थमें यह कार्य पूर्वकालमें अधिकतर प्रायः मुनियोंके ही द्वारा होता था। वे महा तपस्वी निरपेक्ष धीर धीर स्वयम् अपने घरकी अतुल सम्पत्ति (राज्यादि विभव ) छोडकर अपने आत्माके कल्याणार्थ ही समस्त परिग्रहसे ममस्व रहित हए, एकवार खड़े खड़े करपारमें ही स्वाद रहित अल्प भोजन