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सोलहकारण धर्म |
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उल्टै माठ दोष इत्यादि पचीस मल दोष हैं उनको सर्वथा प्रकारसे टालकर निर्मल सम्यग्दर्शनको धारण करना चाहिये ।
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निर्मल सम्यग्दर्शनके प्रगट होनेसे प्रशम, संवेग, अनुकम्पा, ओर आस्तिक्यता तथा मैत्री प्रमोद कारुण्य और माध्यस्थ इत्यादि चार चार भाव भी प्रकट होते हैं ।
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प्रशम - अर्थात् कषायोंकी मंदता होनेसे विषयों में अरुचिका होना ।
सम्वेग – संसार के दुःखोंसे भयभीत रहना तथा धर्मानुराज सहित यथाशक्ति संयम धारण करना ।
अनुकम्पा - प्राणी मात्र पर दयाभावका होना ।
आस्तिक्य- धर्म और धर्म के फलमें श्रद्धा ( दृढ़ विश्वास ) का होना अर्थात् कभी भी कठिनसे कठिन अवसर आनेपर ( रोग, शोक, भय, विश्मय, खेद, दरिद्रता इत्यादि उपस्थित होनेपर ) भी मनमें इस प्रकारको शंका न होना, कि धर्म करनेसे हो धर्मात्माओं को कष्ट आते हैं, और पापी आनन्द मनाते हैं, या यह पंचमकाल है, इसमें धर्म नहीं फलता, पाप हो फलता है इत्यादि । यद्यपि यह देखनेमें जाता है, कि वर्तमान में बहुत से सदाचारी पुरुषोंको कष्ट और पापियोंको सुख भोगने में आता है. परन्तु इससे यह न समझना चाहिये कि धर्मका फल दुःख और पापका फल सुख है, किन्तु यही दृढ़ विश्वास रखना चाहिये कि सदैव धर्मसे सुख और पाप से दुःख ही मिलता है ।
कितनी हो बहिनें मातायें केवल इसलिये ही पवित्र दिगम्बर
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