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सोलहकारण धर्म । समाधिमरणको इच्छा रखनेवाले प्राणियों को चाहिये कि वे आसन्न-मृत्युका कारण देखकर या अपनो वृद्धास्वयाका विचार कर प्रथम ही अपनी संपत्तिको । यदि गृहस्थ हो तो) व्यवसहा करके अर्थात् जिसको जिस प्रकार देना हो, सो विभाजित कर शेष द्रव्य धर्मकार्योंके निमित्त प्रदान कर उससे अपने आत्माको निर्ममत्व करे, पश्चात रागदोषके परिहारार्थ अपने पर्याय सम्बन्धी शत्रुओं ( अर्थात जिनसे कुछ भो रागद्वेष हो गया हो ) को बुलाकर उनसे क्षमा करवाते और अपने आप भी उनपर क्षमा प्रदान करें, उन्हें जिस तिसप्रकार संतोषित करें, फिर यदि पाक्ति हो तो मुनिव्रत धारण करके समाधिमरणको सौयारी करे और यदि यकायक ऐसा न कर सो तो घरमें रहकर ही क्रमश: प्रतिमा रूपसे संयम और तपका अभ्यास करे और धीरे धीरे आहार विहार आदि कम करता जावें, स्वाद रहित सादा शुद्ध प्रासक भोजन करे कभी कभी उपवास (चारों प्रकारके आहारोंका त्याग ) करता जावे, कभी दूध, कभी पानी, कभी छांछ पर ही दिवस निकाल देवे और जब इस प्रकार होने से परिणामो में कवायभाव व संश्लेशता न हो, धेयं न छूटे तब अधिक अधिक उपवासका अम्यास बढ़ाता जावे, इसी प्रकार शीत उष्णादि परीषहाँके महनेका भो अभ्यास करे । पलंग व कोमल गद्दियोंका सोना त्यागकर घासको चटाई, व भूमि आदिपर सोनेका अभ्यास डाले और ज्यों २ अभ्यास होता जाय त्यों त्यों बाह्य परिग्रहांका त्याग करता जावे।
___ संसारकी विचित्र अवस्था है, इसमें अनेक पुरुष गुणको भी अवगुण रूपसे ग्रहण करके अथवा निष्कारण ही शत्रु बन बैठते हैं, ये अनेक प्रकारके दुर्वचन कहते हैं, मारते भो हैं,