________________
सोलहकारण धर्म । आचार्य भक्ति है, जो कल्याणकारी है। ऐसे आचार्यभक्ति नाम भावनाका स्वरूप कहा, सो ही कहा हैदेवत्त हैं उपदेश अनेक सु, आप सदा परमारथ धारी । देश विदेश विहार करें, दश धर्म धरें मव पार उतारी || दीक्षा शिक्षा देत दयाकर, मुनिवर गुण छत्तीसके धारी। ज्ञान कहे भवसागर नाव, नमु आचार्य त्रियोग सम्हाणी |
॥ इति आचार्यभक्ति भावना ॥ ११ ॥
(१२) बहुश्रुतभक्ति भावना।
बहन तभक्ति भावना- अर्थात् उपाध्याय महाराजकी पूजा उपासना करना । उपाध्याय उन महामुनियोंको कहते है, जिनको सम्पूर्ण द्वादशांग वाणीका पूर्ण ज्ञान हो, इन्हें ही बहुध त या तके वली कहते हैं। ये स्वयम् आचार्य महाराजके पास बैठकर पढ़ते, तत्वचर्चा करते है और आचार्य महाराजको आज्ञा प्रमाण अन्य शिष्यगणोंको पढ़ाते हैं, इसलिये इन्हें पाटक भी कहते हैं । यद्यपि आचार्य से विद्यामें ये कुछ न्यून नहीं होते हैं, तो भी संघकी मर्यादानुसार संघके एक ही संघाधिपत्ति होते हैं । आचार्य में और उपाध्यायमे केवल इतना ही मेद है कि भाचार्य तो संघका नायक समझा जाता है, और