Book Title: Solahkaran Dharma Dipak
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Shailesh Dahyabhai Kapadia

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Page 29
________________ सोलहकारण पसे । [२७. होती है, परन्तु और भी अनेकानेक आपत्तियोंका साम्हना करना पड़ता है। लोकनिन्दा, पञ्चदण्ड, राज्यदण्ड भोगना पड़ता है। आतशक, भगन्दर, प्रमेहादि रोगांसे शरीर जरित हो जाता है। अंग भंग कराना पड़ता है और कभी कभी तो कितने ही लोगोंको इस महा अपराधके कारण जीवनसे भी हाथ घो डालना पड़ता है। कामी पुरुष की, माता, बहिन, बेदर भाई, वेटा आदि भी ध्यान नहीं रखते हैं । ज्यों ज्यों शरीर जर्जर, निर्बल और तेज होन, घातुक्षीण होता जाता है कामेच्छा त्यों त्यों उतनी ही अधिक बढ़ती जाती है। उन्हें कभी भी तृप्ति नहीं होती। कदाचित् वे स्वयम् कामसेवन न भी कर सके, तो दूसरोंको सेवन कराकर प्रसन्न होते हैं । कामी पुरुष सदा आर्तरूप रहते हैं। उनकी दृष्टि सदा विषले सांपोंके समान निज परको दुखदाई होती है। कामो पुरुष यदि स्वकीम सन्तोष न करके वेश्या तथा परली सेवन करता है तो उसकी की भी प्रायः अपने पतिको कुमागमें आरूढ़ देखकर कामके वशीभूत हो अन्य पुरुषको अपना शोलरूपी भूषण लूटा देती है। हाय ! यह काम कैसा. भयंकर पिशाच है कि इसका प्रस्या हुआ प्राणी फिर नहीं निकल सकता । जितने अनर्थ, अन्याय और दुःख हैं वे सब कामके वश होकर ही किये जाते हैं । इस कामरूपी पिशाचसे बचनेक लिये हमें उन महापुरुषोका जीवनचरित्र सा स्मरण रखना चाहिये कि जिन्होंने इसे जड़मूलसे उखाड़ कर फेंक दिया गया है। जैसे भीष्मपितामह ( जिन्हें गुरु गंगेय भी कहते हैं) ने याजीव स्त्रीमात्र का त्यागकर अखंड ब्रह्मचर्य पालनकर इस भूमिकी शोभा बढ़ाई त ह ।

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